परीक्षा के लिए तो बार कोडिंग की कांपियां उपयोग की गई लेकिन उनका न तो स्कैन किया जा रहा है और नहीं उनका डाटा कंप्यूटर में पहुंच रहा है। विश्वविद्यालय में स्कैनर की व्यवस्था नहीं है। जिससे कांपियों के स्कैन का काम नहीं किया जा रहा है। ऐसे में न तो परीक्षा में गड़बड़ी रुकेगी और रिजल्ट तैयार करने में हो रही गलतियों को रोका जा सकेगा।
यह है बार कोडिंग सिस्टम
बार कोडिंग बाली उत्तर पुस्तिकाओं में कोडिंग – डीकोडिंग की समस्या नहीं होती। उत्तर पुस्तिकाओं का बार कोड नंबर होता है। उत्तर पुस्तिकाओं के बार कोड नंबर उपस्थिति पंजिका पर परीक्षार्थियों के नाम के साथ दर्ज होते हैं। इससे परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिका की अदला-बदली नहीं हो सकती।उत्तर पुस्तिकाओं का विवरण रखने में भी आसानी होती है। बार कोड होने से मशीन सभी पेजों का स्कैन कर लेती है। डाटा कंप्यूटर में सीधे पहुंच जाता है। जिससे रिजल्ट तैयार करने में आसानी होती है।
पुरानी कांपियां बर्बाद
बार कोडिंग की उत्तर पुस्तिकाओं के चक्कर में विश्वविद्यालय की पुरानी कांपियो का उपयोग नहीं हो पाया। बड़ी संख्या में पुरानी उत्तर पुस्तिकाएं बची हुई हैं। ऐसे में जहां एक ओर पुरानी कांपियों को बर्बादी हुई वहीं नए सिस्टम को अच्छे से लागू नहीं किया जा सका और न ही उसका फायदा विश्वविद्यालय एवं छात्र – छात्राओं को मिल पाया।
प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालय में पहले से ही बार कोडिंग की उत्तर पुस्तिकाएं उपयोग की जा रही है। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय पिछले एक वर्ष से इस कार्य में जुटा हुआ है लेकिन अभी तक इसे अच्छे से अमल में नहीं ला सका।
छात्रों को सहूलियत नहीं
रिजल्ट से असंतुष्ट छात्र – छात्राएं उत्तर पुस्तिका देखने के लिए विश्वविद्यालय में आवेदन किए हैं। बार कोडिंग सिस्टम का उपयोग यदि होता तो कांपियों को खोजने में कर्मचारियों को ज्यादा समय नहीं लगता और समय रहते कांपी देखने का मिल जाती। विश्वविद्यालय भले ही ज्यादा राशि खर्च कर बार कोड वाली कांपियां परीक्षा के लिए उपयोग किया लेकिन इसका फायदा नहीं मिल पाया।
उत्तर पुस्तिकाओं का अभी स्कैन नहीं हो पा रहा है। स्कैनर नहीं होने से वजह से यह समस्या हो रही है। शुरुआत हुई है अब हम आगे स्कैनर खरीदने का प्रयास कर रहे हैं। स्कैनर महंगा आता है। अगले सत्र तक प्रयास करेंगे की व्यवस्था हो जाए।
प्रो.केएन सिंह यादव, कुलपति