नेत्रहीन यमुना प्रसाद शास्त्री दो बार सांसद रहे। 1977 के चुनाव में महाराजा मार्तण्ड सिंह को जहां 169941 मत मिले थे वहीं यमुना प्रसाद शास्त्री को 176634 वोट मिले। इसी प्रकार 1989 के चुनाव में जब शास्त्री ने महारानी को हराया था तो कुल मतदाता 1058090 थे जिनमें यमुना प्रसाद शास्त्री को 215420 मत मिले और महारानी प्रवीण कुमारी को 140664 वोट ही मिल पाए थे। इस प्रकार जनता के बीच के समाजवादी नेता ने किले की राजनीति को किनारे कर प्रजातंत्र की असली परिभाषा समाज के सामने रखी थी।
सबसे अधिक चौकाने वाला परिणाम रीवा लोकसभा सीट पर 1991 में आया। जब पहली बार प्रदेश में बसपा सांसद के रूप में भीम सिंह पटेल को जीत हासिल हुई। पेशे से शिक्षक रहे भीम सिंह पटेल ने विंध्य के मूर्धन्य नेता श्रीनिवास तिवारी को पराजित कर यह उपलब्धि हासिल की। इसके बाद से बसपा ने यहां जड़ें जमा ली और कई चुनाव जीते। भाजपा को केवल तीन बार ही जीत हासिल हुई है। 2014 में भाजपा की ओर से जनार्दन मिश्रा मैदान में उतरे तो उनके सामने कांग्रेस से सुंदरलाल तिवारी और बसपा से सांसद रहे देवराज पटेल सामने थे। साधारण परिवार से निकले जनार्दन को कमजोर प्रत्याशी कहा जा रहा था लेकिन जनता ने उनकी सादगी को पसंद किया और 1.68 लाख वोटों से जीत दिलाई। अधिकांश चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबला रहा है, कई बार चतुष्कोणीय मुकाबले की स्थिति बनी।
1952 में रीवा लोकसभा सीट का गठन किया गया था। पहले सांसद के रूप में कांग्रेस के रामभान सिंह तिवारी चुने गए थे। 1952 से लेकर अभी तक में छह बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा एवं तीन बार बसपा ने जीत हासिल की है। एक बार भारतीय लोकदल एवं जनता पार्टी से यमुना प्रसाद जीते थे। वहीं दो बार निर्दलीय के रूप में महाराजा मार्तण्ड सिंह निर्वाचित हुए थे। कांग्रेस 1999 के बाद चुनाव नहीं जीत पाई है। आसन्न चुनाव में कांग्रेस वापसी के लिए रणनीति बना रही हैं। तो वहीं भाजपा आठो विधानसभा सीटें जीतकर काफी उत्साहित है। जबकि बसपा भी पूरे दम-खम के साथ मैदान में है।