रात करीब आठ बजे तक महिलाएं विधि – विधान से पूजन अर्चना करती रहीं। इसी प्रकार देवी घाट में पश्चिम मुखी सूर्य नारायण भगवान को दूघ, दही, घी, गंगाजल से अर्घ्य दिया। बुधवार को महिलाओं ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया। इसके साथ ही इस पर्व का समापन हो गया।
कहा जाता है कि प्रथम मनु के पुत्र प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महाराज ने महर्षि कश्यप से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। महर्षि ने महाराज को पुत्रेष्ठि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के पश्चात महाराज को एक पुत्र का जन्म हुआ। किन्तु वह पुत्र मृत हुआ। महाराज प्रियव्रत मृत पुत्र को यज्ञ में ले गए और विलाप करने लगे।
देखते हैं आकाश मार्ग से ज्योतिर्मय विमान पृथ्वी की ओर आ रहा है। उस विमान से एक दिव्यकृति नारी निकली। उसने अपने आपको ब्रम्हा मानस पुत्री चण्डी देवी बताया। कहा, मै विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं अपूतों को पुत्र प्रदान करती हूं। इतना कहकर देवी ने मृतपुत्र को स्पर्श कर उसको जीवित कर दिया।
महाराज अत्यधिक प्रसन्न होकर षष्ठी देवी की स्तुति करने लगे। विहिप के सामाजिक समरसता प्रमुख प्रदीप पाठक ने बताया कि देवी ने राजा से कहा कि ऐसी व्यवस्था करें। कि सभी हमारी पूजा करने लगे। राजा ने अपने राज्य में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष को षष्ठी पर्व मनाया।
इस पर्व में मीठा चावल का भोग लगाया जाता है। इस सूर्यषष्ठी के पावन पर्व में ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ढलते सूर्य के समय सूर्य भगवान अपनी पत्नी छाया मया के साथ विराजमान होते हैं। तभी से यह पर्व मनाया जाने लगा।
भोजपुरी मंच के संरक्षक सुनील अग्रवाल ने बताया कि 14 नवम्बर को सुबह चार बजे से 7 बजे तक आराधना के साथ पर्व का समापन हो गया।