यह किसी एक क्षेत्र की स्थिति नहीं बल्कि पूरे विंध्य की समस्या भी बनती जा रही है। जबकि इस क्षेत्र के जंगलों में अब भी बाघों के साथ ही अन्य प्रजाति के वन्य प्राणी बड़ी संख्या में हैं। गर्मी के दिनों में पानी की समस्या के चलते कई मौतें सामने आई थी।
रीवा जिले में ही कई हिरण पानी की तलाश में गांवों की ओर भागकर आ गए थे, जिन्हें स्थानीय लोगों एवं शिकारी जानवरों ने दौड़ाकर मार डाला था। दो की मौत तो सिलपरा में नहर में पानी पीने के प्रयास की वजह से हो गई थी। हाल के दिनों की बात करें तो आसपास के जिलों से भी कई जानवरों की मौतों की खबरें आई हैं।
वन्यजीवों की मौत के बढ़ते आंकड़ों की वजह से शासन ने भी मुख्य वन सरंक्षक से भी कहा है कि वह सभी वन मंडलों में सुरक्षा के इंतजाम कराएं। जंगलों के आसपास के गांवों में बड़ी संख्या में जानवरों का अब तक शिकार किया जा रहा है, यह लगातार विभाग के लिए ङ्क्षचता का विषय है।
जिले में बीते कुछ समय के अंतराल में गुढ़ क्षेत्र के अमिरती में हिरणों का शिकार करने की कई घटनाएं सामने आई हैं। वहीं सिरमौर के पडऱी क्षेत्र में तो विभाग ने शिकारियों को धर दबोचा था। कुछ तो शिकार की वजह से वन्य प्राणी मर रहे हैं तो वहीं कई विभाग के प्रबंधन में कमी के चलते मरते जा रहे हैं।
महीनेभर में आठ से अधिक मौतें महीनेभर के भीतर आठ से अधिक वन्य प्राणियों की मौतें हो चुकी हैं। जिसमें संजयगांधी टाइगर रिजर्व सीधी में बाघिन की मौत, सीधी में ही तीन भालुओं का शिकार, पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही तेंदुए का शिकार किया गया। इसी तरह मुकुंदपुर में सीधी से जख्मी एक भालू को उपचार के लिए लाया गया था, जिसकी मौत दो दिन के बाद हो गई।
मुकुंदपुर में ही शेरनी जैस्मिन ने तीन शावकों को जन्म दिया था, जिसमें दो की मौत हो गई और एक अन्य की भी तबियत खराब चल रही है। रीवा में कुछ दिन पहले ही सेमरिया क्षेत्र के जंगल में एक हिरण की मौत हो गई थी। लकड़बग्घे, नीलगाय एवं अन्य जानवरों की मौतें तो आम होती जा रही हैं।
रेस्क्यू सेंटर में पर्याप्त संसाधन नहीं मुकुंदपुर में चिडिय़ाघर परिसर में ही एक रेस्क्यू सेंटर भी बनाया गया है। यहां पर चिडिय़ाघर के साथ ही अन्य क्षेत्रों से भी वन्यप्राणियों को उपचार के लिए लाया जाता है। यहां पर जो पद स्वीकृत हैं, उनके अनुसार पदस्थापना नहीं है। एक चिकित्सक के भरोसे पूरा रेस्क्यू सेंटर है। जानवरों के खून एवं अन्य सेंपल लेने के लिए भी वनकर्मियों का उपयोग किया जा रहा है।
पैथालाजी एवं अन्य स्टाफ अभी तक नहीं भरे जा सकें। कुछ वनकर्मी ही अब जानवरों का सेंपल लेने में चिकित्सक की मदद कर रहे हैं। हालांकि बीते कुछ समय में कई गंभीर बीमारी एवं जख्मी बाघों के साथ ही अन्य जानवरों को ठीक भी किया गया है लेकिन जिस तरह के उपचार का दावा किया गया था, वह अब तक नहीं मिल पा रहा है। यहां पर प्रदेश के अन्य कई हिस्सों से जानवर भेजे जा रहे हैं।