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कोरेाना का कहर : एक साल का आक्सीजन स्टाक दो माह में ही खत्म, 800 टन लिक्विड Oxygen मगवाएं

locationरीवाPublished: Jun 04, 2021 12:30:56 pm

Submitted by:

Rajesh Patel

एसजीएमएच में सामान्य दिनों में एक सप्ताह में आते थे टैंकर, मरीज बढ़े तो 16 टन का टैंकर हर दूसरे दिन, मामूली देर होने पर बैकअप में हर रोज 1400 सिलेंडर लगाने पड़े

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रीवा. कोरोना की पहली लहर दूसरी लहर पर भारी पड़ी। अकेले संजय गांधी अस्प्ताल में 12 माह तक उपयोग होने वाली लिक्विेड मेडिकल आक्सीन का स्टाक महज दो माह में खत्म हो गया। इतना ही नहीं आक्सीजन का टैंकर देर से आने पर इमर्जेंसी के लिए बैकअप में 1400 आक्सीजन सिलेंडर लगाने पड़े। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह आपदा कितनी खतरनाक है।
सामान्य दिनों की अपेक्षा तीन गुना बढ़ी खपत
एसजीमएच व जीएमएच में सामान्य दिनों में एक सप्ताह में 16 टन लिक्विड मेडिकल आक्सीजन की खपत है। बोकारो से लिक्विेड मेडिकल आक्सीजन का टैंकर हर सप्ताह आता है। इसके अलावा 500 से 700 आक्सीजन सिलेंडर मरीजों वार्ड से लेकर ओपीडी और आपरेशन कक्ष तक उपयोग होते थे। चालू साल की अपेक्षा बीते साल कोरेाना काल में ही 12 माह के भीतर 50 टैंकर यानी लगभग एक हजार टन आक्सीजन की खपत रही। लेकिन, इस साल अप्रैल-मई माह में आक्सीजन की खपत ढाई से तीन गुना रही। अप्रैल में संक्रमितों की संख्या बढऩे पर आक्सीजन की कमी हो गई।
आक्सीजन के टैंकर दूसरे दिन मंगवाना पड़ा
आक्सीजन के 16 टन के टैंकर की आश्वयकता हर दूसरे दिन पडऩे लगी। कुछ घंटे देर होने पर औसत 1400 से 1500 आक्सीजन सिलेंडर लगाने पड़ते थे। इस तरह सालभर में उपायोग होने वाला लिक्विेड आक्सीजन का स्टाक अप्रैल से मई के बीच 50 टैंकर से अधिक खत्म हो गया। इसी तरह बैकअप में दोनों माह को मिलाकर 15 हजार आक्सीजन सिलेंडर लगाने पड़े।
मांग बढ़ी तो सिंगरौली-सतना प्लांट ने खड़े कर लिए हाथ
एसजीमएच में वैसे तो वार्ड में पाइप लाइन से लिक्विेड मेडिकल आक्सीजन की सप्लाई की व्यवस्था है। इसके लिए बोकारो से स्टाक की सप्लाई की जा रही है। इस आपदा के दौरान टैंकर आने पर देरी और कमी पडऩे पर आक्सीजन सिलेंडर की डिमांड बढ़ गई। चिकित्सकों के मुताबिक बैकअप के लिए सिलेंडर सिंगरौली व सतना प्लांट से आता था। आपदा के दौरान दोनों प्लांटों ने हाथ खड़े कर लिए। कलेक्टर इलैयाराजा टी के प्रयास से दोनों जिले से आक्सीजन सिलेंडर आए। कलेक्टर ने शासन से बात कर बोकारो से लिक्विेड आक्सीजन की गाड़ी जो सप्ताह में एक आ रही थी। वह हर दूसरे दिन आने लगी। जिससे आक्सीजन की समस्या दूर हुई।
आक्सीजन के 100 सिलेंडर
अप्रैल-मई में आक्सीजन की खपत बढऩे पर जिला प्रशासन के प्रयास से सुपर स्पेशलिटी में फौरन आक्सीजन प्लांट स्थापित किया गया। हर रोज आक्सीजन के 100 सिलेंडर तैयार हो रहा है।
10 अप्रैल से अचानक बढ़ गई आक्सीजन की खपत
संजय गांधी अस्पताल में गंभीर मरीजों की संख्या 10 अप्रैल से अचानक बढऩे लगी। सतना, सीधी और सिंगरौली से रेफर होकर मरीज आने लगे। गंभीर स्थिति में आक्सीजन की मांग बढ़ गई। यहां पर एक सप्ताह में 16 टन लिक्विड आक्सीजन लगती थी। मरीज बढऩे से हर दूसरे दिन इतनी मात्रा में आक्सीजन की खपत होने लगी। यह सिलिसिला 15 मई तक जारी रहा।
ऐसे पड़ी जरूरत
–एजसीजएम के चिकित्सक कहते हैं कि पहली लहर में हाई फ्लो आक्सीजन वाले 10 से 15 प्रतिशत मरीजों को 15 लीटर प्रति मिनट आक्सीजन की जरूरत पड़ी। इस बार 60 प्रतिशत मरीजों को हाई फ्लो 15 से 50 लीटर प्रति मिनट आक्सीजन की आश्यकता पड़ी।
ऐसे किया वार
पहली लहर में संक्रमण ने फेफडो के नीचे हिस्से में वार किया था। इस बार संक्रमण ने पूरे फेफडे को डैमेज किया। पहले सिटी स्कोर 15 से 20 तक था। इस बार 25 में से 25 तक था।
वर्जन..
पहली की अपेक्षा दूसरी लहर में लोगों को आक्सीजन की आश्यकता अधिक है। हाई फ्लो के कारण फेफड़ो पर अधिक वार रहा। वेंटीलेटर पर मरीजों को अधिकत समय तक रखना पड़ा। मरीजों की संख्या अधिक रही। जिससे खपत ज्यादा रही।
डॉ. मनोज इंदुलकर, डीन, मेडिकल कालेज

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