मंदिर के पास दुकानें लगाने वाले व्यवसाई नगर निगम द्वारा निर्धारित किया गया दुकानों का प्रीमियम या फिर किराया नहीं देना चाहते हैं। इनका कहना है कि पहले वह झोपड़ी लगाकर दुकान चलाते रहे हैं, निगम ने कहा था कि पक्की दुकानें उपलब्ध कराएंगे। उस दौरान रुपए जमा करने की कोई बात नहीं की गई थी। पूर्व में नगर निगम परिषद की बैठक में भी यह प्रस्ताव आया था कि नि:शुल्क दुकानें दी जाए लेकिन उसे वापस कर दिया गया था।
वर्ष 2011-12 में चिरहुला में बनाई गई दुकानों का प्रीमियम २ लाख रुपए प्रति दुकान के हिसाब से निर्धारित किया गया था। 20 दुकानों का कुल 40 लाख रुपए जमा होने के बाद ही इनका आवंटन होगा। इसी तरह इसी तरह दो हजार रुपए प्रति माह की दर से दुकानों का किराया निर्धारित किया गया था। सभी 20 दुकानों का एक साल का यह किराया 4.80 लाख रुपए होता है। ऐसे में बीते छह वर्ष का किराया 28.80 लाख रुपए होता है, इसके साथ ही 40 लाख प्रीमियम के भी नहीं मिले हंै। यदि दुकानों का आवंटन हो गया होता तो अब तक निगम को 70 लाख रुपए से अधिक राजस्व प्राप्त होता।
जिस स्थान पर दुकानें नगर निगम ने बनाई है, वह भूमि मंदिर की है। मंदिर परिसर कलेक्टर के अधीन है। इस कारण व्यवसाइयों ने कलेक्टर से भी शिकायत की थी। जिसके चलते वहां पर सुनवाई चल रही है। अभी किसी तरह का निर्णय वहां से नहीं हुआ है।
दुकानें बनाकर आवंटन की प्रक्रिया पूरी नहीं करने के चलते आडिट में भी इसकी आपत्ति उठाई गई है। इसे लगातार कई वर्षों से आपत्ति में दर्ज किया जा रहा है। इसके बावजूद नगर निगम की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। निगम को हो रहे राजस्व के नुकसान पर सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह बघेल ने कलेक्टर एवं नगरीय प्रशासन विभाग से शिकायत भी दर्ज कराई थी, जिस पर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है।
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चिरहुला मंदिर परिसर में दुकानें बनाने और आवंटन का मामला कई वर्ष पुराना है, इस कारण उसके बारे में अभी जानकारी नहीं है। इसकी फाइल देखने के बाद आगे की प्रक्रिया बढ़ाई जाएगी।
-आरपी सिंह, आयुक्त नगर निगम