जगत के पालन पोषण की जिम्मेदारी इन चार मासों में भगवान शिव के ऊपर आ जाती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ज्योतिष की गणना के अनुसार, सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये महत्वपूर्ण एकादशी आती है। लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान विश्राम से बाहर निकलेंगे। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।
पुराणों की मानें तो भगवान विष्णु इस दिन से चार मास राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षा ग्रहण, यज्ञ, गृह प्रवेश,गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कार्य हैं वे सभी त्याज्य होते हैं।
ऐसे करें हरि शयन ज्योतिषी राजेश साहनी के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन प्रात: नित्य कर्मों से निवर्त होकर, स्नान कर पवित्र गंगा जल से घर शुद्ध करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें और पूजन करें। भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें। एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें।
वंदना का विशेष पर्व है चातुर्मास देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाता है जो देवप्रबोधिनी एकादशी तक 4 माह का कालखंड माना गया है। ईश वंदना का विशेष पर्व है चातुर्मास। हिंदू धर्म के अलावा जैन धर्म में भी चातुर्मास विशिष्ट पर्व माना गया है। यह चार माह साधना एवं उपासना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गए हैं। जिसमें संकल्प लेकर और एक स्थान पर रुक कर विशिष्ट साधना की जाती है।