पूर्व में रतहरी तालाब की भूमि सरकारी थी, वर्ष २०११ में कूट रचित दस्तावेजों का सहारा लेकर गयाचरण वाजपेयी नाम के व्यक्ति को भूमि स्वामी बना दिया गया। बाद में गयाचरण ने इस भूमि को अल्पआय वर्ग गृह निर्माण सोसायटी के नाम कर दिया। सोसायटी ने इसे प्लाट बनाकर बेचना शुरू कर दिया। इस पर आपत्तियां भी उठाई गई हैं। बताया जा रहा है कि इसमें रजिस्ट्री विभाग और नगर निगम से जुड़े लोगों ने भी प्लाट अपने नाम करा लिया है।
शहर में विकास कार्यों के लिए मास्टर प्लान बनाया गया है। जिसका पूरी तरह से उल्लंघन किया गया। नगर निगम के अधिकारियों की उदासीनता की वजह से शहर के अन्य हिस्सों में भी मास्टर प्लान का पालन नहीं किया गया है। प्लान के मुताबिक शहर के तालाबों का सौंदर्यीकरण किया जाना था लेकिन यहां तो उसका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया।
शहर में होने वाले हर निर्माण के लिए नगर निगम से अनुमति लेना जरूरी होता है। तालाब परिसर में बनाए गए मकानों के लिए भवन अनुज्ञा नियमों के मुताबिक जारी नहीं की जा सकती थी, इसलिए निगम के अधिकारियों ने वहां पर निर्माण होने दिया। इतना ही नहीं नगर निगम द्वारा बनाई गई सड़क को भी नष्ट कर वहां मकान बना दिया गया है। निगम के अधिकारियों ने नोटिस तो दी लेकिन अपनी सड़क नहीं बचा सके। इससे भू माफिया के नेटवर्क का प्रशासन पर दबाव समझा जा सकता है।
एनजीटी में भी यह मामला पहुंचा था, जहां पर कलेक्टर की ओर से प्रतिवेदन दिया गया था कि आवासीय कालोनी बनाने संबंधी कोई अनुमति नहीं दी गई है। एनजीटी ने तालाब की भूमि पर निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्देश दिया था।
तालाब की भूमि बचाने के लिए आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता विश्वनाथ पटेल ने कई बार धरना प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि कलेक्टर एवं निगम अधिकारियों को फिर से आवेदन दिया है, यदि कार्रवाई नहीं होगी तो इस बार सीएम हाउस तक यात्रा निकाली जाएगी और वहां पर आत्मघाती कदम भी उठाएंगे क्योंकि इस भ्रष्ट व्यवस्था के आवाज उठाना बेमतलब होता जा रहा है।