विश्वविद्यालय में एमफिल पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए एक अगस्त को परीक्षा आयोजित की गई थी। संकायाध्यक्षों ने पत्र के माध्यम के कुलपति को अवगत कराया है कि अध्यादेश के नियमों के अनुरूप प्रश्नपत्र में दो भाग होना चाहिए था। निर्धारित नियमों के अनुरूप पहले भाग में रिसर्च मेथोडोलॉजी से संबंधित 50 अंक के 50 वैकल्पिक प्रश्न पूछे जाना चाहिए थे जबकि दूसरे भाग में 50 अंक के विषय संबंधित 50 प्रश्न पूछे चाहिए चाहिए। जबकि इसके विपरीत प्रश्नपत्र में केवल विषय संबंधित 100 प्रश्न 100 अंक के पूछे गए हैं, जो अध्यादेश के नियम के अनुरूप नहीं है। गौरतलब है कि एमफिल के 30 विषयों की प्रवेश परीक्षा में करीब 400 छात्र-छात्राएं शामिल हुए हैं।
भविष्य में खड़ी हो सकती है मुश्किल
एमफिल के प्रश्नपत्र नियम अनुरूप नहीं होने के चलते भविष्य में मुश्किल खड़ी हो सकती है। इससे न केवल विश्वविद्यालय के लिए समस्य उत्पन्न होगी। बल्कि प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं का भी भविष्य खतरे में पड़ सकता है। संकायाध्यक्षों का सुझाव है कि बेहतर होगा कि इसमें अभी तत्काल में ही संशोधन कर लिया जाए।
विश्वविद्यालय के सूत्रों की माने तो जीवन विज्ञान के संकायाध्यक्ष प्रो. रहस्यमणि मिश्रा, विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. एसएल अग्रवाल, नॉन फॉर्मल एजूकेशन संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. सुनील तिवारी, समाज विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. महेश चंद्र श्रीवास्तव व प्रबंध संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. अतुल पाण्डेय ने कुलपति प्रो. केएन सिंह यादव को पत्र लिखकर कहा है कि प्रश्नपत्र अध्यादेश के अनुरूप नहीं हैं। साथ ही संशोधन का सुझाव दिया है।
कुलपति को पत्र लिखने वाले संकायाध्यक्षों ने कहा है कि जिस प्रश्नपत्र से परीक्षा ली गई है उसे 100 अंकों की बजाय 50 अंक का करते हुए रिसर्च मेथोडोलॉजी की परीक्षा अलग से करा ली जाए। रिसर्च मेथोडोलॉजी की परीक्षा के लिए 50 अंकों के 50 वैकल्पिक प्रश्नों वाला प्रश्नपत्र बनाया जाए।
शासन स्तर से अभी हाल में अध्यादेश जारी किया गया है। अध्यादेश -13 के कंडिका (ए) में एमफिल की प्रवेश परीक्षा के नियमों का जिक्र है। नियम में प्रश्नपत्र निर्धारण के साथ ही प्रवेश परीक्षा से पहले पाठ्यक्रम सार्वजनिक करने का निर्देश है। हैरत की बात यह है कि विश्वविद्यालय में अभी पाठ्यक्रम ही नहीं तैयार है और परीक्षा करा ली गई।