बीते कई वर्षों से जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पौधे रोपित किए जा रहे थे। अब आग ने इतने विकराल रूप में फैलाव किया कि वन विभाग की मेहनत पर पानी फिर गया, साथ ही लाखों रुपए जो खर्च किए गए थे वह भी व्यर्थ हो गया है। बताया गया है कि वर्ष २०१४-१५ में ४० हेक्टेयर में सागौन के ३० हजार पौधे रोपे गए थे। इसी तरह बांस एवं अन्य प्रजातियों के करीब ६० हजार पौधों का अलग से रोपण हुआ था। वर्ष २०१७ में ४५ हेक्टेयर में ३० हजार सागौन के पौधे, २० हेक्टेयर में बांस के १५ हजार पौधे रोपे गए थे। २०१८ में ३० और २० हेक्टेयर के अलग-अलग भागों में करीब ५० हजार से अधिक की सं या में पौधे रोपित किए गए थे। हाल के वर्षों में लगाए गए ये पौधें जलकर नष्ट हो गए हैं, अब यहां पर नए सिरे से पौधरोपण का कार्य किया जाएगा।
वन विभाग के पास सेटेलाइट से आग की घटनाओं पर तत्काल अलर्ट मिलता है लेकिन विभाग के अधिकारियों द्वारा समय पर मौके पर अमला भेजने में उदासीनता के कारण आग बड़े हिस्से को चपेट में ले लेती है। मोहनिया घाटी में इसके पहले कई बार जंगल में आग लगी और भारी नुकसान होता रहा है। यहां पर जानवर भी रहते हैं जो आगजनी के दौरान गांवों की ओर भागते हैं और बेमौत मारे जाते हैं। दो साल पहले भी आग लगी थी लेकिन उस दौरान स्थानीय लोगों द्वारा दी गई सूचनाओं को तत्कालीन डीएफओ ने गंभीरता से नहीं लिया था। आग जब बड़े हिस्से में फैली तब तीसरे दिन मैदानी अमला वन विभाग का पहुंचा था। इस तरह की लापरवाही की घटनाओं से आग बुझाने के प्रयासों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।