अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि गांवों में मधुमेह की जांच न होने से रोगियों को इस बीमारी से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में पता नही होता है। इसलिए वे शहरी क्षेत्र में रहने वालों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावित हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक डायबिटीज कैंप लगाए जाएं, ताकि लोगों को इस बीमारी के दुष्परिणामों से बचाया जा सके।
हर साल आ रहे दो हजार नए रोगी
मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज इंदुलकर का कहना है कि विंध्य रीजन में मधुमेह रोग तेजी से बढ़ रहा है। सालभर में 20 हजार रोगी विभाग में उपचार के लिए भर्ती हो रहे हैं जिसमें 2 हजार रोगी केवल मधुमेह से पीडि़त होते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि डायबिटिक फुट अल्सर के रोगियों की संख्या भी बढ़ी है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि स्थिति नियंत्रण मेंं नही है।
अध्ययन में लगे 18 माह
मधुमेह के चलते होने वाले दुष्परिणामों के बारे में पता करने के लिए डॉ. उमेश प्रताप सिंह को 18 माह का वक्त लगा। मार्च 2016 से अध्ययन शुरू किया था जो अगस्त 2017 में पूरा हुआ। शोध मेडिसिन जनरल में अगले महीने प्रकाशित होगा।