कहा कि, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद देश भर में जश्न का माहौल है लेकिन कश्मीरियों से कोई नहीं पूछ रहा है। कहा कि ये तो उस प्रकार से हो गया जैसे जिस लड़की की शादी हो रही हो उससे पूछा ही न जाए कि दूल्हा कैसा चाहिए। डॉ. लाखण्डे ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द करना हिन्दू – मुस्लिम पोलराइजेशन बताया। इस दौरान उन्होंने नागालैण्ड और हिमाचल प्रदेश का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ बोलना गलत नहीं है, लेकिन अपने कर्तव्यों का भी ध्यान रखना चाहिए।
बच्चों में ज्यादा होती है ह्यूमैनिटी
डॉ. लोखण्डे ने कहा कि एक बच्चा हिरन के साथ एॅन्जाय करता है लेकिन उस बच्चे का पिता हिरन में भोजन देखता है। कहा कि जैसे – जैसे बालक बड़ा होता है उसकी ह्यूमैनिटी कम होती जाती है। कहा कि बच्चे से पूछा जाए कि आप शराब पियोगे या दूध तो वह दूध ही कहेगा। वही बच्चा बड़े होने पर दूध की जगह शराब भी मांग सकता है।
पैरेंट्स में बेनिफिट और लॉस
बताया कि पैरेंट्स में जब हम बेनिफिट और लॉस देखते लेते हैं तो वहां हमारी ह्यूमैनिटी खत्म हो जाती है। ऐसे विचार आते हैं कि मॉ को अपने पास रखेंगे तो लॉस होगा। गांव में रहेंगी तो कुछ बेनिफिट ही होगा। इस प्रकार यहां पर हमारी ह्यूमैनिटी खत्म हो जाती है।
गेट कोंचिग अवलेबल
लेक्चर प्रोग्राम में गेट के बारे में स्टूडेंट्स को बताया गया। प्रो. डॉ. अखिलेश शुक्ला ने रीवा में रहकर भी गेट तैयारी करने के तरीके बताए। गेट परीक्षा के बाद होने वाले बेनिफिट एवं इंस्टीट्यूट के बारे में बताया। स्टूडेंट्स को बताया कि कॉलेज के स्टडी करने के साथ ही तैयारी करने का अच्छा मौका है। ऐसा कर आप अपने कॅरियर को और अच्छा बना सकते हो। इसके साथ ही नीलिमा भरद्वाज का लेक्चर हुआ। जिसे स्टूडेंट्स ने ध्यान से सुना। लेक्चर सुबह 10.30 से शुरू हुआ 4.30 तक चला।
………
स्टूडेंट्स जब स्कूल से कॉलेज पहुंचते हैं तो उन्हें कई प्रकार की परिस्थितियों का स्वत: ही सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के लेक्चर प्रोग्राम में पार्टिसिपेट करने से हर परिस्थिति से जूझने की झमता विकसित होती है।
प्रो.जसकेतन साहू
स्टूडेंट्स प्रोग्राम में काफी बढ़-चढ़कर पार्टिसिपेट कर रहे हैं। कॉलेज में स्टडी को लेकर उनकी जो भी भ्रातियां हैं उसे खुलकर कह पा रहे हैं। उन्हें कोर्स से हटकर लाइफ को लेकर नई – नई जानकारियां मिल रही हैं।
प्रो.राजकुमार गुप्ता
कॉलेज में इस तरह के प्रोग्राम होते रहते हैं। इससे स्टूडेंट्स में तार्किक क्षमता विकसित होती है। वे भिन्न – भिन्न विचारों को एक मंच पर सुनकर उसे समझ रहे हैं। उन्हें अपनी प्रतिभा खुलकर प्रजेंट करने का मौका मिल रहा है।
डॉ. बीके अग्रवाल, प्रिंसिपल