एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर के नीचे शिव का एक दूसरा मंदिर भी है और इसमे चमत्कारिक मणि मौजूद है। कई वर्षों पहले मंदिर के तहखाने से लगातार सांप बिच्छुओं के निकलने की वजह से मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया गया है। मंदिर के ठीक सामने एक गढ़ी मौजूद थी। इस शिवलिंग के अलावा रीवा रियासत के महाराजा ने यही पर चार अन्य मंदिरों का निर्माण कराया है। ऐसा माना जाता कि देवतालाब के दर्शन से चारोधाम की यात्रा पूरी होती है। इस मंदिर से भक्तों की आस्था जुड़ी हुई। इसीलिए यहां प्रति वर्ष तीन मेले लगते है और इसी आस्था से प्रति माह हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
शिवकी नगरी देवतालाब का नाम ही तालाब से मिलकर बना है। देवतालाब मंदिर के आसपास कई तालाब हैं। वैसे देवतालाब में कई तालाबों का होना, यहां की विशेषता है। शिव मंदिर प्रांगण में जो तालाब है यह शिव कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। शिव कुण्ड से जल लेकर ही श्रद्धालु सदाशिव भोलेनाथ के पंच शिवलिंग विग्रह में चढ़ाने की परंपरा रही है। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के बुजुर्गों के अनुसार शिव कुण्ड से पांच बार जल लेकर पांचों मंदिर में चढ़ाया जाता है।
देवतालाब शिव मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। चारों धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की पूजा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक देवतालाब शिव मंदिर में जल नहीं चढ़ा देते हैं। चारों धाम की यात्रा करने के बाद श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचकर भोलेनाथ का पूजन करते हैं। सावन महीने में भारी भीड़ लगती है।
किदवंती है कि शिव के परम भक्त महर्षि मार्कण्डेय देवतालाब स्थित शिव के दर्शन के हठ में आराधना में लीन थे। महर्षि को दर्शन देने के लिए भगवान यहां पर मंदिर बनाने के लिए विश्वकर्मा भगवान को आदेशित किया। उसके बाद रातोंरात यहां विशाल मंदिर का निर्माण हुआ और शिवलिंग की स्थापना हुई। कहते है कि एक ही पत्थर पर बना हुआ अदभुत मंदिर सिर्फ देवतालाब में स्थित है।