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रीवा

नगरीय सीमा के भीतर उद्योग विहार फिर भी 18 वर्षों से टैक्स नहीं वसूल पाया निगम

– टैक्स वसूली पर सख्ती नहीं करने के कोर्ट के आदेश का हवाला देकर 110 कंपनियां नहीं दे रही टैक्स- नगर निगम अब फिर से टैक्स की डिमांड औद्योगिक कंपनियों को भेजने की तैयारी में

रीवाAug 05, 2021 / 11:27 am

Mrigendra Singh

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Municipal corporation Rewa, Property Tax in Industrial aria



रीवा। नगर निगम की सीमा में स्थित सामान्य तौर पर हर आवासीय एवं व्यवसायिक भवनों से टैक्स वसूली की जा रही है। वहीं औद्योगिक क्षेत्र चोरहटा नगर निगम की सीमा क्षेत्र के भीतर होने के बाद भी टैक्स की वसूली नहीं हो पा रही है। इसके लिए करीब 18 वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन टैक्स वसूली में निगम सफल नहीं हो पा रहा है। पूर्व में उद्योग विहार चोरहटा की दो प्रमुख कंपनियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जहां से टैक्स वसूली को लेकर सख्ती नहीं बरतने का निर्देश जारी किया गया था। इसी आदेश के चलते कंपनियां निगम को टैक्स देने में आनाकानी करती हैं। अब एक बार फिर से नगर निगम ने टैक्स वसूलने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि कोर्ट में विंध्या टेलीलिंक लिमिटेड ने वर्ष 2003 में नगर निगम द्वारा संपत्तिकर की वसूली के लिए दिए गए नोटिस के खिलाफ याचिका लगाई थी। इसी से जुड़ी एक और कंपनी भी पहुंची थी। दोनों के मामले में कोर्ट ने नगर निगम के टैक्स वसूली पर यह कहते हुए रोक लगाई थी कि तालाबंदी या अन्य ऐसी सख्ती नहीं बरती जाए जिससे उद्योगों का कामकाज प्रभावित हो। कोर्ट के इस निर्देश के बाद तत्कालीन अधिकारियों ने कई वर्षों तक प्रयास नहीं किया। वर्ष 2019 में तत्कालीन आयुक्त सभाजीत यादव ने यह कहते हुए नोटिस जारी किया कि सख्ती के बिना टैक्स वसूलने में कोई रोक नहीं लगाई गई है। साथ ही दो कंपनियां कोर्ट गई थी लेकिन वर्तमान में करीब 110 कंपनियां उद्योग विहार में चल रही हैं। उन सबसे वसूली करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। इस पर उद्योगों के प्रतिनिधि मंडल ने आयुक्त से बात की थी लेकिन वह निगम का टैक्स वसूलने की बात पर कायम थे। इसी दौरान पुराने आदेश का हवाला देकर कंपनियां कोर्ट चली गई, जिसके बाद शासन से कोर्ट ने कुछ जानकारियां तलब की हैं। इसी दौरान कोराना का समय आया और कोर्ट की गतिविधियां भी रुकी रहीं। अब इस पर निगम फिर से अपनी तैयारियां मजबूत कर रहा है।
– अधिकार क्षेत्र को लेकर उठाई थी आपत्ति
चोरहटा में उद्योगों की जब स्थापना हुई थी तो उस दौरान वह क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र में शामिल था। उद्योगों का नियंत्रण औद्योगिक केन्द्र विकास निगम के अधीन था। विकास एवं रखरखाव का कार्य भी वहीं से होता था। यह क्षेत्र जब नगर निगम की सीमा में शामिल हुए तो उन्हें संपत्तिकर जमा कराने की नोटिस जारी की गई। जिस पर कंपनियों ने यह कहते हुए कोर्ट में आपत्ति उठाई कि वह औद्योगिक क्षेत्र विकास निगम के नियंत्रण में काम करते हैं। इसलिए नगर निगम उनसे टैक्स वसूलने या फिर राशि समय पर जमा नहीं होने पर तालाबंदी जैसी चेतावनी नहीं दे सकता। उनदिनों नगर निगम प्रशासन अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाया, जिसकी वजह से कोर्ट ने फौरी तौर पर की जा रही टैक्स वसूली की सख्ती को रोकने का निर्देश दिया। इसके बाद से करीब डेढ़ दशक तक दोनों पक्षों की ओर से कोई चर्चा इस पर नहीं हुई।

पांच करोड़ का नुकसान
करीब 18 वर्षों से टैक्स की वसूली नहीं होने पर नगर निगम को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है। जिस पर अब उसकी भरपाई के प्रयास किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि गत वर्ष निगम प्रशासन ने बकाया टैक्स का अनुमान लगाया था, जिसमें करीब पांच करोड़ रुपए के टैक्स का अनुमान था। इनदिनों नगर निगम की आर्थिक हालत इतना अधिक खराब है कि उसे अपने संसाधन बढ़ाने होंगे। दो वर्ष पूर्व भी इसी के लिए प्रयास शुरू किए गए थे कि टैक्स आएगा तो शहर के भीतर रुके विकास कार्यों को गति मिलेगी।

निगम अब पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में रखेगा पक्ष
हाईकोर्ट के निर्देशों का हवाला देकर उद्योग विहार की कंपनियां टैक्स देने से कतरा रही हैं। इस पर नगर निगम प्रशासन पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए तैयारी कर रहा है। इसके लिए पूर्व में ही नगर निगम आयुक्त ने कलेक्ट्रेट एवं नगरीय प्रशासन विभाग से जानकारियां जुटाई हैं। बताया गया है कि चोरहटा, दोही, बाबूपुर, खोभर एवं खैरा को नगर निगम में शामिल किया गया था। इन्हीं गांवों में उद्योग विहार बसाया गया है।

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