चोरहटा में उद्योगों की जब स्थापना हुई थी तो उस दौरान वह क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र में शामिल था। उद्योगों का नियंत्रण औद्योगिक केन्द्र विकास निगम के अधीन था। विकास एवं रखरखाव का कार्य भी वहीं से होता था। यह क्षेत्र जब नगर निगम की सीमा में शामिल हुए तो उन्हें संपत्तिकर जमा कराने की नोटिस जारी की गई। जिस पर कंपनियों ने यह कहते हुए कोर्ट में आपत्ति उठाई कि वह औद्योगिक क्षेत्र विकास निगम के नियंत्रण में काम करते हैं। इसलिए नगर निगम उनसे टैक्स वसूलने या फिर राशि समय पर जमा नहीं होने पर तालाबंदी जैसी चेतावनी नहीं दे सकता। उनदिनों नगर निगम प्रशासन अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाया, जिसकी वजह से कोर्ट ने फौरी तौर पर की जा रही टैक्स वसूली की सख्ती को रोकने का निर्देश दिया। इसके बाद से करीब डेढ़ दशक तक दोनों पक्षों की ओर से कोई चर्चा इस पर नहीं हुई।
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पांच करोड़ का नुकसान
करीब 18 वर्षों से टैक्स की वसूली नहीं होने पर नगर निगम को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है। जिस पर अब उसकी भरपाई के प्रयास किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि गत वर्ष निगम प्रशासन ने बकाया टैक्स का अनुमान लगाया था, जिसमें करीब पांच करोड़ रुपए के टैक्स का अनुमान था। इनदिनों नगर निगम की आर्थिक हालत इतना अधिक खराब है कि उसे अपने संसाधन बढ़ाने होंगे। दो वर्ष पूर्व भी इसी के लिए प्रयास शुरू किए गए थे कि टैक्स आएगा तो शहर के भीतर रुके विकास कार्यों को गति मिलेगी।
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निगम अब पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में रखेगा पक्ष
हाईकोर्ट के निर्देशों का हवाला देकर उद्योग विहार की कंपनियां टैक्स देने से कतरा रही हैं। इस पर नगर निगम प्रशासन पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए तैयारी कर रहा है। इसके लिए पूर्व में ही नगर निगम आयुक्त ने कलेक्ट्रेट एवं नगरीय प्रशासन विभाग से जानकारियां जुटाई हैं। बताया गया है कि चोरहटा, दोही, बाबूपुर, खोभर एवं खैरा को नगर निगम में शामिल किया गया था। इन्हीं गांवों में उद्योग विहार बसाया गया है।
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