ज्यादातर लोग यही दलील देते मिल जाते हैं कि राजनीति में बहुत गंदगी है। सच भी है। लेकिन राजनीति शुरू से ऐसी नहीं रही पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसी शख्सियत इसका उदाहरण हैं। मैं तो शुरू से इस बदलाव के अभियान में लगा हूं। पत्रिका के अभियान ने हौसला बढ़ाया है।
सुभाष श्रीवास्तव, समाजसेवी।
राजनीति अब आर्थिक रूप में सक्षम लोगों तक सीमित होकर रह गई है। जिसके पास धनबल है उसी के पास जनबल है। समाज में जड़ जमा चुकी इस व्यवस्था को बदलना होगा। राजनीति की गंदगी खुद ब खुद दूर हो जाएगी। बदलाव का हौसला तो रखते हैं। लेकिन अभी तक कोई आधार नहीं मिला।
नरेंद्र सिंह, समाजसेवी।
स्थिति अत्यधिक खराब हो गई है। नेताओं ने समाज में पूरी तरह से जाति व धर्म का जहर घोल दिया है। कोई आपका बहुत हितैषी है तो जरूरत पर ब्लड डोनेट कर देगा लेकिन जब बात वोट की आती है तो लोग जाति व धर्म देखने लगते हैं। इसमें बदलाव की जरूरत है। कोशिश जरूर करूंगा।
सिद्धार्थ श्रीवास्तव, युवा कवि।
राजनीति अब केवल जाति-धर्म की होकर रह गई है। पहले पार्टियों की एक विचारधारा हुआ करती थी लेकिन अब नेताओं की क्षुद्र विचारधारा रह गई है और उसी पर चुनाव हो रहा है। नेताओं को बदला जाए तो राजनीति खुद ब खुद स्वच्छ हो जाएगी। हम सब को अब इस पर सोचना होगा।
संत कुमार पटेल, युवा।
गंदी राजनीति करने वाले नेता तभी तक सफल हैं, जब समाज के लोग उनका साथ दे रहे हैं। समाज को इस बात के लिए जागरूक करना होगा। वह जाति व धर्म के आधार पर नहीं नेता की छवि को देखकर उसे अपना नेता चुने। जिस दिन लोग यह करने लगेंगे। राजनीति स्वच्छ हो जाएगी।
अरेज सिंह पटेल, युवा।
समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो स्वच्छ छवि के हैं और राजनीति में अपनी सहभागिता देना चाहते हैं। लेकिन वह आगे आने से डरते हैं। उन्हें भय इस बात का है कि कहीं राजनीति में सक्रिय गलत लोग उनके लिए मुश्किल न खड़ी कर दें। यह डर दूर करना होगा।
राजीव कुमार विश्वकर्मा, युवा।
राजनीति में सक्रियता व बदलाव की सोच लेकर बहुत से लोग घर में बैठे हैं। बाहर निकलकर सक्रिय होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। पत्रिका का चेंजमेंकर्स अभियान उसके लिए एक बेहतर विकल्प हैं। इससे उचित मंच के साथ सहयोग भी मिलेगा। मैं भी उसमें शामिल हूं।
नीलेश सिंह, समाजसेवी।
इस पुरुषवादी समाज में जब पुरुष ही राजनीति में आने को डरते हैं तो महिलाओं की बात ही नहीं करिए। बहुत कम महिलाएं ऐसी हैं, जो घर में अपनी बात अधिकार पूर्वक रख पाती हों। बाहर बोलने के लिए बहुत अधिक साहस की जरूरत होगी। सबसे पहले महिलाओं को जागरूक व प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
सरोज सिंह, समाजसेवी
महिला अपने पर आ जाए तो बहुत कुछ कर सकती है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। राजनीति में उनकी अधिक से अधिक भागीदारी हो तो समाज के लिए अच्छा करेंगी। पत्रिका के चेंजमेंकर्स अभियान से जुडऩा चाहूंगी। कोशिश होगी कि कुछ अच्छा और नया करें।
क्रांति सेन, समाजसेवी
समाज में बदलाव की जरूरत लंबे समय से समझी जा रही है। इसके लिए बड़े स्तर पर सक्रिय पहल किए जाने की जरूरत है। पत्रिका की ओर से इसके लिए प्रयास शुरू किया जा रहा है। हम जैसे युवाओं का आगे आना चाहिए। क्योंकि युवा सोच व ऊर्जा से ही बदलाव संभव है।
शिशुपाल सिंह, समाजसेवी
राजनीति में भ्रष्टता इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि उसे दूर करना नामुमकिन सा जान पड़ता रहा है। लेकिन पत्रिका समूह की ओर से जो तरीका निकाला गया है वह बेहतरीन सोच का नतीजा है। संभव है कि अच्छी सोच वाले आगे आएं तो उन्हें सफलता मिले। अच्छी राजनीति के लिए अच्छे लोगों की जरूरत है।
पुष्पराज सिंह, समाजसेवी
जाति का जहर पूरे देश में फैला चुका है। ऐसे में राजनीति कैसे स्वच्छ हो सकती है। मेरा चले तो नाम के बाद लिखा जाने वाले जाति का शब्द ही प्रतिबंधित कर दूं। समाज में जब यह बदलाव आ जाएगा तो राजनीति को स्वच्छ होते देर नहीं लगेगी। इसी बदलाव की जरूरत समझता हूं।
राजमणि भारतीय, समाजसेवी
राजनीति में प्रवेश छात्रसंघ के माध्यम से होना चाहिए। कॉलेजों में इसके लिए छात्रों को प्रेरित किया जाए कि वह जिस तरह इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस व पीसीएस बनना चाहते हैं। उसी तरह राजनीति में भी रूचि लें। राजनीति में खराब नहीं है। उसे खराब कर दिया गया है। अब अच्छा बनाना है।
रमेश सिंह, समाजसेवी।
पत्रिका की ओर से आयोजित परिचर्चा में नागेंद्र सिंह, इंद्रदेव, उपेंद्र पटेल, मुकेश पटेल, दीपक साकेत व नीलेश सोंधिया सहित अन्य ने भी अपना विचार रखते हुए पत्रिका के चेंजमेंकर्स अभियान से जुडऩे की इच्छा जताई। वह भी बदलाव के पक्षधर हैं और सक्रिय भूमिका निभाने को तत्पर हैं।