इस अवधि को चातुर्मास भी कहा गया है जिसमें साधक एवं साधु-संत एक स्थान पर रुक कर ईश्वर चिंतन साधना एवं उपासना करते हैं। इस दौरान शुभ कार्य, शादी-विवाह, उपनयन संस्कार व अन्य सभी तरह के मंगल कार्य वर्जित बताए गए हैं। देवोत्थान यानी देवउठनी एकादशी को भगवान जागते हैं और उसके बाद से मंगल मुहुर्तों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। 19 नंवबर को देवोत्थान है लेकिन इस बार 12 नवंबर से गुरु अस्त हो जाएगा जिसका उदय 7 दिसंबर को होगा। इस अवधि में विवाह व मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे।
शुभ कार्यों के लिए 8 दिसंबर से 15 दिसंबर तक का समय ही शुद्ध है इसके बाद धनु नामक खरमास के चलते वर्ष के पुन: मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे। ज्योतिषी राजेश साहनी के अनुसार पौराणिक मान्यताएं है कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर 4 माह हेतु विश्राम के लिए चले जाते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश के साथ देवशयनी एकादशी का उदय होता है और मंगल मुहूर्त समाप्त हो जाते हैं जो कि सूर्य के तुला राशि में प्रवेश के चलते देव उठनी एकादशी और मंगल मुहूर्त का प्रारंभ होता है।