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रीवा

आवारा पशुओं पर रोक न लगने से किसान हो रहे हैं परेशान

तत्कालीन कमिश्नर डीएस राय ने उठाया था सार्थक कदम

रीवाMay 20, 2019 / 10:38 pm

Anil kumar

sone se lade khet...dekhakar inhen sataane lagee sone kee suraksha ko

Peasant trouble

रीवा/ चाकघाट. अवारा पशुओं के चलते ग्रामीण अंचलों में किसानों को भारी क्षति हो रही है। छोटे कास्तकार जो अपने खेत की सुरक्षा के लिए घेराबन्दी नहीं कर पाते वे काफी परेशान हैं। लेकिन क्षति पहुंचाने वाले अवारा पशुओं पर रोक नही लगायी जा रही है। रीवा क्षेत्र में ऐरा प्रथा के चलते किसानों की फसल को अवारा पशुओं द्वारा चर लिया जाता है अथवा नष्ट कर दिया जाता है, जिससे किसानों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। जिस पर रोक लगाने के लिए कठोर कदम उठाया जाना आवश्यक है।
ऐरा प्रथा के बारे में लगभग 14 वर्ष पूर्व तत्कालीन कमिश्नर डीएस राय ने कृषकों के हितों को ध्यान में रखते हुए साकारात्मक निर्णय लिया था। ऐरा प्रथा को समाप्त करने के सम्बन्ध में उन्होंने जन जागरण करने की दिशा में संगोष्ठी आयोजित करने के निर्देश संभाग के समस्त जिला कलेक्टरों को दिया था। राय, जन प्रतिनिधियों को भी भेजे गए पत्र के माध्यम से कहा था कि ऐरा प्रथा ग्रामीण अंचल के क्षेत्रों में तत्काल व हमेशा के लिए बन्द होनी चाहिए। उन्होंने जिला कलेक्टरों से अपने-अपने जिलों के ग्रामीण अंचलों में जन सहमति उत्पन्न करने की भी बात कही थी। किसानों की इस गंभीर समस्या पर ग्राम, जनपद एवं जिला पंचायत की सामान्य सभा में ऐरा प्रथा को बन्द कराने एवं कांजी हाउस प्रारम्भ कराने सम्बन्धी प्रस्ताव/संकल्प लाने एवं पारित कराने के लिए पत्र में लेख किया था। जिसमें उल्लेख था कि वर्षा की असामान्य स्थिति को देखते हुए कृषकों द्वारा बोई गई फसल की सुरक्षा की दृष्टि से संभाग के सभी ग्रामों में ऐरा प्रथा पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाया जाता है। प्रत्येक कृषक/पशुपालक यह सुनिश्चित करेगा कि उसका कोई जानवर किसी ऐसे खेतों में न जावे जिसमें किसी प्रकार की खरीफ फसल लगी हो। यह व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी समस्त अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व)एवं तहसीलदार की होगी कि वे पटवारियों, कोटवारों को अवगत करावें एवं सभी ग्रामों में मुनादी करावे। समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायतों, ग्राम पंचायतों के सरपंचों, सदस्यों एवं सचिवों के माध्यम से इसका पालन कराएं। लेकिन यह आदेश कागज तक सीमित होकर रह गया है।
नीलगाय व आवारा मवेशियों का आतंक
पंचायतों द्वारा कांजी हाउस की कोई रूप रेखा तय नही है। दबंगों लोगों के पशु खुले रूप में फसल नष्ट कर रहे हैं। अवारा पशुओं के जमघट से कई दुर्घटना हो चुकी है। चाकघाट नगर में कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। अब तो ऐरा मवेशी से भी ज्यादा भयावह स्थिति रोझ (नीलगाय) की बन गई है जिससे किसानों की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। किसानों ने मांग की है कि बोई गई फसल को बचाने के लिए एवं नगरीय क्षेत्रों में दुर्घटना को रोकने के लिए अवारा पशुओं को रोका जाकर ऐरा प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए।

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