एमआइसी के कामकाज को लेकर पहले भी आरोप लगाए गए थे। प्रदेश में नई सरकार गठित होने के बाद मुख्यमंत्री ने रीवा, छिंदवाड़ा और ग्वालियर नगर निगम की जांच कराई थी। जिसमें पाया गया है कि वर्ष 2015 से लेकर 2018 तक संपत्तिकर के अधिभार की राशि में छह प्रतिशत की छूट देकर नगर निगम को आर्थिक रूप से हानि पहुंचाई गई। इसी तरह लेनदारियों में 18 प्रतिशत ब्याज वसूलने के बजाय 9 प्रतिशत की छूट दे दी गई। वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए अंबेडकर बाजार एवं शिल्पी प्लाजा के पीछे वाहन पार्किंग शुल्क का प्रीमियम कम निर्धारित कर निगम का आर्थिक क्षति पहुंचाई। इसी तरह अल्पकालिक निविदा बुलाई गई और उसमें नियमों की अनदेखी करते हुए निविदाओं की स्वीकृति दी गई। जिससे निगम को घाटा हुआ।
– स्कीम छह को लेकर सदस्यों पर यह है आरोप
शहर के स्कीम नंबर छह में अनियमितता को लेकर चल रही कार्रवाई को प्रभावित करने का आरोप भी एमआइसी सदस्यों पर है। बीते २ अगस्त को अधिकारियों के निलंबन के प्रस्ताव पर निर्धारित अवधि में कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप है। २६ अगस्त को बुलाई गई बैठक में सदस्यों ने निर्णय पर कोई हस्ताक्षर नहीं किए, बल्कि ३० अगस्त को बिना एजेंडा जारी किए स्वयं बैठक कर ली और निर्णय भी पारित कर दिया कि अनियमितता का जिन अधिकारियों पर आरोप है उन पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। आयुक्त ने अधिनियम की धारा 53(२) का उल्लेख करते हुए कहा है कि बिना सम्मिलन के निर्णय लेना विधि विरुद्ध है। जिस तरह के एमआइसी सदस्यों पर आरोप है, उनका हवाला देते हुए कहा गया है कि नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 19 के तहत पद से हटाया जाए।
– प्रभारी महापौर ने नियम विरुद्ध लिया निर्णय
प्रभारी महापौर वेंकटेश पाण्डेय पर अन्य आरोप तो दूसरे एमआइसी सदस्यों के समान ही हैं। साथ ही उन पर कई अतिरिक्त आरोप भी हैं। जिसमें कहा गया है कि बिना एजेंडा जारी किए 30 अगस्त को जो सदस्यों ने निर्णय लिया, उसकी जानकारी इ-मेल के जरिए पूर्व कार्यपालन यंत्री शैलेन्द्र शुक्ला को भेज दी। इसका उन्होंने उल्लेख हाइकोर्ट में दायर याचिका में भी किया है। इसे पदीय दायित्व के विपरीत कार्य माना गया है। वहीं 31 जुलाई के परिषद के सम्मिलन में वेंकटेश पाण्डेय सहित अन्य सदस्यों ने कहा था कि आयुक्त भ्रष्टाचार से जुड़े प्रस्ताव लाएं, उन पर सीधे कार्रवाई होगी और जब प्रस्ताव भेजा तो बचाने का कार्य करने लगे।
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इन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव
एमआइसी के जिन सदस्यों को पद से हटाने का प्रस्ताव है, उसमें प्रमुख रूप से वेंकटेश पाण्डेय, नीरज पटेल, मनीष श्रीवास्तव, शिवदत्त पाण्डेय, सतीश सिंह, संजू कोल, ललिता वर्मा, संजना सोनी, अखिल गुप्ता आदि शामिल हैं।
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मेयर इन काउंसिल के कामकाज संचालन का जो नियम है, उसकी अनदेखी की गई है। शासन ने भी जांच कराई तो पाया गया है कि निगम को आर्थिक नुकसान एमआइसी सदस्यों ने पहुंचाया है। स्कीम नंबर छह से जुड़े मामले में भी नियम विरुद्ध निर्णय पारित कर दिया है। इसलिए इनका पद पर बने रहना निगम हित में नहीं हैं। जिसके चलते संभागायुक्त को प्रस्ताव भेजा है कि पद से पृथक करें।
सभाजीत यादव, आयुक्त नगर निगम
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मैं व्यक्तिगत कारणों की वजह से दिल्ली जा रहा हूं। निगम आयुक्त ने क्या प्रस्ताव दिया है, इसकी जानकारी नहीं है। वापस लौटने पर ही इस मामले में कुछ कह पाऊंगा। जो निर्णय एमआइसी में हुए हैं वह नियमों के तहत हैं।
वेंकटेश पाण्डेय, प्रभारी महापौर
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एमआइसी अपने से कोई प्रस्ताव नहीं मंगाती, निगम के अधिकारी जो प्रस्तुत करते हैं उसी पर निर्णय होता है। निविदा समिति की अनुशंसा पर ही कार्रवाई होती है। स्कीम छह से जुड़ा जो विषय है, उसमें तो हम सब भी कह रहे हैं कि सभी की जवाबदेही तय हो। केवल दो अधिकारियों का निलंबन पर्याप्त नहीं है। दोनों अधिकारी वर्तमान में यहां पदस्थ भी नहीं हैं कि जांच को प्रभावित करेंगे।
नीरज पटेल, एमआइसी सदस्य