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रीवा

पंचायतों में क्वारंटीन की व्यवस्था फेल, पेड़ों के नीचे रह रहे लोग

ग्रामीण क्षेत्रों में हालात बदतर, दहशत में स्थानीय लोग

रीवाMay 20, 2020 / 10:01 pm

Mahesh Singh

Quarantine system fails in Panchayats, people living under trees

Quarantine system fails in Panchayats, people living under trees

रीवा. लगातार दूसरे प्रदेशों से पहुंच रहे प्रवासी मजदूरों को कवारेन्टीन करने के लिए प्रशासन की व्यवस्था पूरी तरह फेल नजर आ रही है। कहने को तो पंचायतों प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन करने और उनके भोजन वितरण की व्यवस्था हेतु भारी-भरकम बजट उपलब्ध कराया जा रहा है लेकिन हालत यह है कि गांव में लोग पेड़ों के नीचे क्वारंटीन हो रहे हैं। अमूमन यह स्थिति अधिकांश गांव में देखने को मिल रही है।
ऐसा ही मामला गोविंदगढ़ थाने के टीकर ग्राम पंचायत में सामने आ रहा है। यहां पर दूसरे पंचायत से आए करीब 70 लोग पेड़ों के नीचे क्वारंटीन है। इनके लिए पंचायत ने किसी तरह की व्यवस्था नहीं की है। दरअसल ये लोग गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों में नौकरी करने गए थे जहां लॉक डाउन में फंसे हुए थे। शासन द्वारा चलाई जा रही बस व ट्रेन में सवार होकर ये अपने गांव तो पहुंच गए लेकिन यहां भी उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है।
प्रशासन द्वारा सभी पंचायतों को बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूरों को कवारन्टीन करने के लिए व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए हैं लेकिन जमीनी हकीकत इससे दूर है। अधिकांश पंचायतों ने प्रवासी मजदूरों के लिए ढेला भर की व्यवस्था नहीं की है। जिनके घरों में अतिरिक्त कमरे नहीं है वे पेड़ों के नीचे अपना ठिकाना बनाए हुए हैं ताकि यदि उनमें संक्रमण हो तो उनके परिवार के लोग सुरक्षित रह सके। प्रवासी मजदूरों के नाम पर पंचायतों को भारी-भरकम बजट प्रदान किया जा रहा है जो कहां खर्च हो रहा है इसकी जानकारी देने को कोई तैयार नहीं है।
हैरानी की बात तो यह है कि बाहर से आए प्रवासी मजदूरों को स्थानीय लोगों के सौतेले व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है। गांव के लोगों से दूरियां बनाकर रखते हैं। अमूमन यह स्थिति अधिकांश पंचायतों में देखने को मिल रही है। जहां प्रवासी मजदूरों के क्वारंटीन होने की व्यवस्था नहीं की गई है और मजबूरी में उन्हें पेड़ो के नीचे आसरा लेना पड़ रहा है। प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रवासी मजदूरों ने भी नाराजगी व्यक्त की है।
घर वाले पहुंचाते है भोजन
बाहर से आए प्रवासी मजदूरों को किसी तरह की सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की गई है। प्रशासन द्वारा इनको मास्क और सेनेटाइजर की व्यवस्था तक नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में इनको हांथ धोने के लिए साबुन की व्यवस्था खुद ही करनी पड़ रही है। इनके भोजन की व्यवस्था भी नहीं की जा रही है और प्रतिदिन परिजन इनको वहां जाकर भोजन पानी उपलब्ध करवाते हैं।
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हम मुंबई से वापस लौटकर आए है। जिस दिन हम गांव आए थे उस दिन स्कूल और पंचायत भवन गए थे लेकिन वहां ताला बंद था और हमको कोई नहीं मिला। मजबूरी में हम लोग पेड़ के नीचे रह रहे है जिससे हमारे परिवार को संक्रमण न हो। हम लोग कई दिनों से इसी तरह पड़े है लेकिन कोई भी हमको पूंछने नहीं आया।
राजकुमार विश्वकर्मा, प्रवासी मजदूर
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हम लोग मुंबई में मजदूरी करने गए थे जहां से वापस लौटकर आए है। जिस ट्रेन से आए थे उसमें भी हमको भोजन पानी नहीं दिया गया था। हम लोग जब गांव आए तो यहां भी न तो कोई जांच करने आया और न ही हमारे लिए किसी तरह की व्यवस्था की गई है। हम लोग पेड़ के नीचे क्वारंटीन की अवधि गुजार रहे है।
विजय रावत, प्रवासी मजदूर

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