आयोग की सुनवाई में सही तर्क नहीं दे पाने के चलते तीन जनपदों के सीइओ पर अधिनियम की धारा २० के तहत २५ हजार रुपए जुर्माना लगाने के लिए नोटिस जारी की गई है। जिसमें रीवा जनपद के सीइओ हरीशचंद्र द्विवेदी, रायपुर कर्चुलियान के जनपद सीइओ प्रदीप दुबे एवं सिरमौर की जनपद सीइओ सुचिता सिंह को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई १९ अगस्त को नियत की गई है। यह सुनवाई वाट्सएप वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होगी।
आयोग को कलेक्टर कार्यालय से जनपदों के सीइओ के नाम सही नहीं बताए गए थे, जिस पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने नाराजगी भी जाहिर की थी। आदेश में नए डीम्ड पीआइओ तय करते हुए उनकी पेशी 17 अगस्त को निर्धारित की गई है। जिसमें रायुपर कर्चुलियान के तत्कालीन डीम्ड पीआइओ बलवान सिंह मवासे(वर्तमान रायसेन), हनुमना के जनपद सीइओ मोगाराम मेहरा एवं जवा के तत्कालीन सीइओ अखिल श्रीवास्तव(वर्तमान सिहोरा) को भी नोटिस जारी की गई है। इनकी सुनवाई 17 अगस्त को होगी।
इस बीच अपने आदेश में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने टिप्पणी करते हुए अपने मत स्पष्ट किए जिसमें उन्होंने लिखा कि आयोग के समक्ष यह स्पष्ट है की अपीलकर्ता ने जांच से संबंधित समस्त दस्तावेज चाहे थे ना कि सिर्फ जांच की अंतिम रिपोर्ट। लेकिन वह तथ्य भी किसी भी डीम्ड लोक सूचना अधिकारी ने अपने वरिष्ठ कार्यालय द्वारा बार-बार आदेशित करने के बावजूद अपीलकर्ता को उपलब्ध नहीं कराए। क्योंकि मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा होने के कारण सूचना आयोग के समक्ष पारदर्शिता का सिद्धांत सर्वोपरि है। यह एक ऐसा मामला है जहां दस्तावेजों के अध्ययन से स्पष्ट है कि करोड़ों का कराधान घोटाला बड़े पैमाने पर समस्त नियम कानून व्यवस्थाओं को ताक पर रखकर अंजाम दिया गया है। घोटाले में जांच के 7 दिन में कार्यवाही के आदेश के बावजूद लगभग 1 साल बाद भी इस प्रकरण में जांच नहीं होने से पूरी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में है। सुनवाई में डीम्ड लोक सूचना अधिकारी जनपद पंचायत हनुमना, जवा, रीवा, रायपुर कर्चुलियान, एवं सिरमौर द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी देने के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अपनी ओर से कोई युक्तियुक्त कारण नहीं दिए गए हैं। सभी जनपद पंचायतों के डीम्ड पीआईओ द्वारा आयोग को बताया गया की कराधान घोटाले से जुड़े इस प्रकरण में कलेक्टर के जांच आदेश क्रमांक 2495 एवं 2498 दिनांक 12 सितंबर 2019 के बावजूद जांच की कोई कार्यवाही नहीं की गई। आयोग के समक्ष इस तथ्य के सामने आने से साफ है जो जांच रीवा के तत्कालीन कलेक्टर ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने 7 दिन में पूरी करके देने को कहा था वह आदेश संबंधित विभागों में धूल खाती रही। घोटाले की जांच आदेश इस समयसीमा में करवाने के लिए अधिकारी सिविल सेवा नियम से बंधे हुए हैं। वरिष्ठ कार्यालय के आदेश की उपेक्षा करते हुए घोटालों की जांच समयसीमा में न करके संबंधित अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों की अवहेलना की है। आयोग के समक्ष यह स्पष्ट है कि 7 दिनों में होने वाली जांच को सालों साल तक चलाना पूरी तरह से सक्षम अधिकारी के अधिकार क्षेत्र का विषय है। पर जांच से संबंधित समस्त दस्तावेज एवं अधिनियम के तहत आवेदक को सही जानकारी समयसीमा में उपलब्ध कराना सूचना आयोग के अधिकार क्षेत्र में है और संविधान ने इस देश के नागरिकों को यह जानने का अधिकार दिया है कि उनकी गाढ़ी कमाई का पैसा कैसे और किस घोटाले की भेंट चढ़ गया। वही कानून के तहत जानकारी नहीं उपलब्ध होने से आरटीआई प्रकरण को डीम्ड रिफ्यूज्ड माना जाता है इस प्रकार में डीम्ड पीआईओ द्वारा अपीलकर्ता को गुमराह करने की बजाय तत्काल उपलब्ध जानकारी दे देनी चाहिए थी। यहां सवाल यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि घोटाले से जुड़े दस्तावेजों को उपलब्ध कराने के लिए बार-बार वरिष्ठ अधिकारी आदेश देते रहे पर डीम्ड पीआईओ द्वारा किन कारणों से आदेशों की अवहेलना करते हुए अपीलकर्ता को जानकारी से वंचित रखा गया।