चोरहटा से रतहरा तक बायपास बनाने के बाद सड़़क के दोनों और शहर में तेजी से विकास बढ़ा है। बायपास के आसपास लोगों ने जमीनों की प्लाटिंग कर बेच दिया। इसके बाद इन जमीनों को जाने का रास्ता सीधे बायपास से दिया है। इसके लिए कालोनी वालों ने न तो नेशनल हाइवे से मंजूरी ली और न ही निगरानी कर रही कंपनी की स्वीकृति ही प्राप्त की। हालांकि टोल वसूल रही कंपनी पार्थ इंडिया ने लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री को सड़क में अवैध कब्जा को लेकर पत्र लिखा है। इस पर कार्यपालन यंत्री ने अवैध कब्जा हटाने के लिए प्रशासन से मदद मांगी, लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद अब तक पुलिस बल नहीं मिलने के कारण अवैध कब्जा नहीं हटाया गया है। वहीं कंपनी को हाइवे की चुप्पी देखकर अब रिक्त पड़ी जमीन में भी भू माफियों की नजर पड़ गई है।
कंपनी की है जिम्मेदारी
बायपास में टोल वसूल रही कंपनी की जिम्मेदारी है कि वह अधिग्रहण की गई जमीन को संरक्षित करे। लेकिन राजनैतिक रसूख के चलते कंपनी बायपास की जमीन में बढ़ते अतिक्रमण को नहीं रोक पा रही है। इन अवैध रास्तों को बंद करने के दौरान कई बार कंपनी व अधिकारियों के बीच मारपीट की स्थिति निर्मित बन चुकी है।
नहीं जोड़े जा सकते है मार्ग
बायपास की डिजाइन 80 किलोमीटर प्रतिघंटा रफ्तार से बनाई गई है। इसमें व्यवधान नहीं पड़े इसलिए इससे गुजरने वाले सभी मार्गों पर ओंवरब्रीज बनाया गया है। यहां तक की बायपास की ऊंचाई बढ़ाई गई है लेकिन इसके बावजूद मार्ग जोड़े जा रहे हैं। नियमत: नेशलन हाइवे के निर्देश पर ही मार्गों को बायपास में जोड़ा जा सकता है और इसके सड़क पर संकतेक व चेतावनी बोर्ड लगाना अनिवार्य है।