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रीवा

फांस का दर्द सहकर बनाए विवाह के लिए बर्तन, कोरोना में हुए बेकार

जमापूंजी भी बांस खरीदने में लगा दी, अब भुखमरी की कगार पर परिवार

रीवाApr 28, 2021 / 08:43 am

Shivshankar pandey

patrika

Utensils made for marriages with the help of gallic pain, wasted in co

रीवा। फांस का दर्द सहकर वैवाहिक आयोजनों के लिए बांस के बर्तन बनाए। आमदनी के लिए अपनी जमा पूंजी भी बांस खरीदने में लगा दी लेकिन कोरोना के कारण वैवाहिक आयोजन बंद होने से उनके सामान नहीं बिके और परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गया है।
बर्तन बनाकर चलाते हैं जीविका
बांस के बर्तन बनाकर जीविका चलाने वाले लोगों के जीवन पर कोरोना कहर बनकर टूटा है। गत वर्ष के कहर से वे उबर नहीं पाए थे कि इस बार फिर उनको इसकी मान झेतलनी पड़ रही है। दरअसल बांस के बर्तन की सबसे ज्यादा बिक्री वैवाहिक आयोजनों में होती है। बांस के बर्तनों को शुभ माना जाता है और इससे बने बर्तनों को पूजन में इस्तमाल किया जाता है। हर साल की तरह इस साल भी कारीगरों ने बांस के काफी संख्या में बर्तन बनाए थे।
वैवाहिक आयोजनों के लिए बनाए थे बर्तन
अप्रैल माह से शुरू होने वाली लगन को देखते हुए परिवारों ने फरवरी माह से बर्तनों का निर्माण शुरू कर दिया था। उनके पास जो भी जमा पूंजी थी उसका इस्तमाल बांस खरीदने में कर दिया। उससे बर्तन तैयार कर लिये लेकिन जब बिक्री की का समय आया तो कोरोना आ गया। वैवाहिक आयोजनों पर रोक लगने से अब उनके बनाए बर्तन यथावत बने हे। दो माह तक फांस कर दर्द सहकर उन्होंने बर्तनों को तैयर किया ताकि वे अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए कमा सके लेकिन उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। अब उनको बनाए हुए बर्तनों की बिक्री की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है।
गत वर्ष भी कोरोना में बेकार हो गए थे बर्तन
बांस के बर्तन बनाने वाले कारीगरों को गत वर्ष भी कोरोना की मार झेलनी पड़ी थी। मार्च माह से ही लॉक डाउन लग गया था और उनके द्वारा तैयार किये गये सारे बर्तन धरे रह गए। हालांकि गत वर्ष कुछ शर्तों पर वैवाहिक आयोजन हो रहे थे जिससे कुछ सामानों की बिक्री हो भी गई थी लेकिन इस बार तो उनके एक भी बर्तन नहीं बिके है जिससे कारीगर परेशान है।
40 से 50 हजार तक के बनाए है बर्तन
वैवाहिक आयोजनों को देखते हुए एक कारीगर लगभग चालीस से पचास हजार रुपए कीमत तक के बर्तन तैयार किया है। इन बर्तनों को तैयार करने में पहले उन्होंने अपनी पंूजी लगाई है जिसकी बिक्री के बाद उनकीं पूंजी और मुनाफा वापस आता लेकिन जब बिक्री ही नहीं हो रही है तो उनकी पूंजी भी फंस गई है। पीडि़तों को उनकी मेहनत का वास्तविक प्रतिफल तक नहीं मिल पाता है।
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