हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. जीएस चौबे ने बताया कि महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है। आमतौर पर शुरुआत घुटनों में हल्के दर्द से होती है। तब लोग नजरअंदाज करते हैं और पेनकिलर लेते हैं। बाद में डॉक्टर को दिखाते हैं। डॉ. चौबे ने बताया कि जागरूकता से आर्थराइटिस की समस्या घट रही है, लेकिन समय रहते विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श से सर्जरी आदि की नौबत ही नहीं आएगी।
घुटनों में सात दिन लगातार दर्द होना
जोड़ों के दर्द के साथ बुखार आना
बैक्टीरिया और वायरस से जन्मा जोड़ का दर्द
जोड़ से फ्लूड निकलना परेशानियां
सूजन या लगातार दर्द होना
चलना-फिरना या सीढिय़ां चढऩे-उतरने में मुश्किल
नीचे बैठने या बैठकर उठने में दिक्कत
पालथी लगाकर बैठना मुमकिन नहीं
इंडियन टॉयलेट यूज नहीं कर पाना
पैरों की शेप और चाल बिगड़ जाना
साइकिल- साइकिल चलाने से घुटनों की सबसे अच्छी एक्सरसाइज होती है। ५० वर्ष पहले तक लगभग सभी लोग साइकिल चलाते थे। यही वजह है कि घुटने सही रहते हैं।
तैरना और मार्निंग वॉक- घूमने और तैरने से रक्त संचार बढ़ता था। पहले लोग मार्निंग वॉक करते थे, अब युवा सोना पसंद करते हैं, इसलिए ऑर्थराइटिस बढ़ रहा है।
अंकुरित खाना और गुड़- सुबह से अंकुरित आहार लेने से पर्याप्त प्रोटीन मिलता है। गुड़ से खून की कमी नहीं होती।
पालथी लगाकर भोजन- पालथी लगाकर भोजन करने से डाइजेशन सही रहता है। हाथ से भोजन करने से अंगुलियों का मूवमेंट होता है।
धूप- हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूती के लिए विटामिन डी धूप से मिलता है। मतलब वर्ष में 40 दिन 40-४० मिनट के लिए धूप में बैठें। इस दौरान शरीर पर कपड़े कम हों।
मिट्टी में खेल- बच्चों को धूप और मिट्टी में खेलने दें। इससे इम्युनिटी बढ़ती है। विटामिन डी भी मिलता है।
दवाओं और फिजियोथैरेपी से फायदा न होने पर मरीज को आखिरकार ऑर्थोपीडिक सर्जन का सहारा लेना पड़ता है। ऑर्थोपीडिक सर्जन एक्स-रे या एमआरआई से जांच के बाद इलाज की दिशा तय करता है। अगर घुटनों की हड्डियां आपस में रगड़ खाने से बहुत क्षतिग्रस्त नहीं हुई हैं या टांगों की शेप खराब नहीं हुई है तो घुटने में इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इंजेक्शन दो तरह के होते हैं- विस्कोसप्लिमेंटेशन और लोकल स्टेरॉयड। अगर घुटनों का कार्टिलेज खत्म होने के कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाकर घिस रही हैं, मरीज के लिए चलना-फिरना, उठना-बैठना मुश्किल हो गया है तो सर्जरी जरूरी हो जाती है।