रंगमंच का इतिहास बताते हुए नामदेव ने कहा यहां प्रयोग संस्था ने नाटक की शुरुआत की थी। डॉ.हरिसिंह गौर विवि में प्रो. विवेक दत्त झा के निर्देशन में इस संस्था का गठन हुआ था। लेकिन विधिवत रंगकर्म की शुरुआत १९७० से हुई। इससे पहले दशहरे पर नौटंकी होती थीं। इनका हम सालभर इंतजार करते थे। इनमें भी गणेश रामायण मंडल की नौटंकी प्रसिद्ध थी। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे।
स्थानीय नाटक कल्चर के सवाल पर सिने अभिनेता बोले यहां कलाकार अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सराहने दर्शक नहीं हैं। अब भी नाटक देखने में हमारे यहां वह संस्कार नहीं है जो महाराष्ट्र और बंगाल में देखने मिलता है।
1992 में बना था अथग ग्रुप
थिएटर के इतिहास पर चर्चा करते हुए नामदेव ने बताया कि पहला थिएटर ग्रुप १९९२ में बना था। कलाकारों ने अथग (अन्वेषण थिएटर ग्रुप) की स्थापना की थी। तब से लेकर आज तक अथग की यात्रा अनवरत जारी है। अंधायुग, सौजन्यता की ऐसी-तैसी, ताज का टेंडर, भागम-भाग जैसे नाटकों का मंचन अथग द्वारा किया गया। अब यह ग्रुप रजत जयंती मना रहा है।
स्थानीय कलाकारों ने लोकरंग को जन्म देकर रंगकर्मियों को तराशा-
स्थानीय कलाकारों के समर्पण पर नामदेव ने कहा कि यहां के कलाकारों ने न केवल लोकरंग को जन्म दिया, बल्कि कला में निपुण रंगकर्मियों को तराशा भी है। यदि कोई अच्छा कलाकार बनना चाहता है तो उसे रंगमंच से जुडऩा जरूरी है। मप्र स्कूल ड्रामा और नेशनल स्कूल ड्रामा से निकलकर कई कलाकार बड़े मंच पर अभिनय कर रहे हैं। फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा, मुकेश तिवारी, श्रीवर्धन त्रिवेदी, पदम सिंह, पीयूष सुहाने ऐसे नाम हैं, जो देश भर में पहचान स्थापित कर चुके हैं।
पृथ्वीराज कपूर ने भी किए नाटक-
सागर के रंगमंच का जादू ही था, जो भारतीय रंगमंच एवं चित्रपट के महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर को यहां खींच लाया। उन्होंने सागर में गद्दार, पठान, दीवार, बंसी कौल और वह जो अक्सर झापड़ खाता है, जैसे नाटकों का मंचन किया था।
शहर में आधा दर्जन थिएटर कर रहे काम शहर में आधा दर्जन थिएटर काम कर रहे हैं। जिनमें राजकुमार रायकवार का रंगप्रयोग और शुभम उपाध्याय का ग्रुप तथागत थिएटर प्रमुख है। रंग प्रयोग दो साल से तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव करता आ रहा है। वहीं तथागत द्वारा डॉ. गौर की जीवनी पर आधारित नाटक ‘द लीजेंड ऑफ डॉ. गौर करके सफलता प्राप्त की है।