सर्वे में अकेले और साथी के साथ खुश रहने वालों की संख्या में कोई खास अंतर नहीं मिला। यानी खुशी आंतरिक भाव है, जिस पर किसी के होने या न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। वहीं, ३३.३३त्न ने कहा कि खुश रहने पर खुद को या सामाजिक विश्व को जानना और किसी को भूलना आसान हो जाता है।
किससे मिलती है खुशी
काम ईमानदारी से करना – २१.८१ फीसदी
असफलता को साहस से स्वीकारना- १०.९१ फीसदी
परिवार में जब सब खुश हों – ३७.५८ फीसदी
जब कुछ मनचाहा मिल जाए – २२.४२ फीसदी
जब कोई रुचि की बातें करे – ७.२८ फीसदी
खुशी खुद के भीतर या बाह्य वस्तुओं पर निर्भर
खुशी भीतर होती है – ६४.२४ फीसदी
अंदर भी और बाहर भी- ३५.७६ फीसदी
क्या खुशी खरीदी जा सकती है- ६९.७० फीसदी नहीं / ३०.३० फीसदी कुछ समय के लिए
जीवनसाथी संग खुश रहते हैं या अकेले?
अकेले – ४३.०३ फीसदी
साथी के साथ- ४६.०६ फीसदी
दोनों स्थिति में- १०.९१ फीसदी
६३ फीसदी के खुश रहने से स्वास्थ्य बेहतर
४३ फीसदी अकेले ज्यादा खुश दिखे
३३.३३ फीसदी ने कहा कोई काम करने से संतुष्टि मिलने पर खुशी मिलती है
१९.४० फीसदी लोगों का मानना है कि रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होना खुशी देता है
२४.२४ फीसदी ने कहा दोस्तों से गपशप करने, इच्छाएं पूरी होने से खुशी मिलती है
१३.३३ फीसदी लोगों ने कहा संबंधों में परस्पर ईष्र्या या होड़ नहीं हो तो खुश होते हैं