-सुबह १० बजे भोपाल से चले विंध्यांचल एक्सप्रेस
गाड़ी संख्या ११२७१ विध्यांचल एक्सप्रेस सागर से रात में ३ बजे रवाना होती है। भोपाल यह ट्रेन सुबह ९.३० बजे पहुंच जाती है। वहीं, ९ घंटे खड़ी रहने के बाद शाम ६.३० बजे भोपाल से रवाना होती है। यहां पर इस ट्रेन को सुबह १० बजे सागर तक के लिए चलाया जा सकता है। ७ घंटे अप-डाउन के बाद यह ट्रेन वापस शाम को ६.३० बजे भोपाल से रवाना हो सकती है।
तर्क-रेलवे के जिम्मेदार बताते हैं कि भोपाल में मैनटेनेंस होता है। इसमें ३ से ४ घंटे लगते हैं। इस वजह से यह ट्रेन सुबह नहीं चलाई जा सकती।
समाधान-यह ट्रेन इटारसी से चलकर सागर होते हुए भोपाल पहुंचती है, लेकिन इटारसी में यह ट्रेन करीब ३.३० घंटे खड़ी रहती है। यदि इटारसी में ही इस ट्रेन का मैनटेनेंस का काम कराया जाए तो आसानी से यह ट्रेन सुबह भोपाल से सागर तक आ सकती है।
-राज्यरानी सुपर फास्ट ट्रेन भोपाल से चले सुबह १०.३० बजे
गाड़ी संख्या २२१६२ राज्यरानी सुपरफास्ट एक्सप्रसे सागर से सुबह ६.२० बजे निकलती है। यह ट्रेन भोपाल में सुबह १०.०५ बजे पहुंच जाती है। शाम ५.५५ बजे भोपाल से दमोह के लिए निकती है। यानी ८ घंटे भोपाल में खड़ी रहती है। इस ट्रेन को भोपाल से सागर तक चलाया जा सकता है। इसके लिए ट्रेन को सुबह १०.३० बजे निकालकर सागर के लिए रवाना किया जा सकता है। विंध्यांचल एक्सप्रेस ट्रेन की तरह यह आसानी से नियमित अप-डाउन कर सकती है।
तर्क- इस मामले में भी रेलवे अधिकारी भोपाल में इस ट्रेन के मैनटेनेंस के काम होने की बात करते हैं। ३ से ४ घंटे मैनटेनेंस में लगने की वजह बताकर इसे सागर तक न चलाए जाना बताया जाता है।
समाधान- राज्यरानी सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन भोपाल से शाम ६.२० बजे निकलती है, जो दमोह रात ११ बज जाती है। इसके बाद सुबह ५ बजे दमोह से भोपाल के लिए रवाना होती है। यानी यह ट्रेन ६ घंटे दमोह स्टेशन पर खड़ी रहती है। रेलवे चाहे तो इस समय का उपयोग ट्रेन के मैनटनेंस के लिए कर सकता है।
दोपहर के समय नियमित ट्रेन होना जरूरी है। सरकारी कर्मचारियों को अचानक शासकीय कार्य के संबंध में भोपाल बुलाया जाता है। एेसे में ट्रेन न होने से काफी परेशानी उठानी पड़ती है। महिलाओं को ध्यान में रखते हुए रेलवे को नियमित ट्रेन शुरू करनी चाहिए।
वंदना पांडेय, शिक्षक
रेलवे यात्रियों की सुविधाओं की बात करती है, लेकिन सागर की जनता को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। भोपाल जाने के लिए यात्री बसों में धक्के खाकर पहुंचते हैं। हादसों के डर के बीच उन्हें सफर करना पड़ता है। सप्ताह में तीन दिन तो एक भी ट्रेन दोपहर में नहीं रहती। रेलवे को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
राजकुमार दुबे, युवा नेता