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सागर

अस्तित्व की लड़ाई में थर्ड जेंडर की एक और जीत

एक दिन समाज का नजरिया भी थर्ड जेंडर के प्रति बदल ही जाएगा

सागरJan 24, 2019 / 02:13 pm

रेशु जैन

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डॉ. सुश्री शरद सिंह. सागर। कुंभ के इतिहास में पहली बार मकर संक्रांति पर महाकाल के उपासक किन्नर अखाड़े ने शाही स्नान किया। इससे पहले जूना अखाड़े के साथ भव्य पेशवाई निकाली गई। रथ, बग्घी पर सवार होकर आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी व अन्य महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर त्रिवेणी तट पहुंचे। जूना अखाड़े के संतों के साथ संगम में डुबकी लगाई और भगवान सूर्य की उपासना की। अपने अस्तित्व को समाज के बीच बराबरी का सम्मान दिलाने की दिशा में थर्ड जेंडर की यह एक और जीत है। इस जीत का रास्ता आसान नहीं था। किन्नर अखाड़ा चाहता था कि उज्जैन में हुए सिंहस्थ में उनके अखाड़े को मान्यता दे दी जाए किन्तु ऐसा हो नहीं सका था। फिर भी किन्नर अखाड़े ने हार नहीं मानी।

प्रयागराज के इस कुंभ (अद्र्धकुंभ) में अपने अखाड़े को शामिल कराने के लिए किन्नर अखाड़े को कड़ा संघर्ष ओर कई समझौते करने पड़े। इस बार भी अखाड़ा परिषद से मान्यता न मिलने के बाद किन्नर अखाड़े को देश के सबसे बड़े अखाड़ा जूना अखाड़े में सम्मिलित करने पर सहमति बनी। जूना अखाड़े के संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरि जी महाराज के बीच यमुना बैंक रोड स्थित मौजगिरि मंदिर में हुई बैठक के बाद एक-दूसरे की परंपराओं व अनुष्ठानों में शामिल होने संबंध में निर्णय लिया गया। दोनों अखाड़ों के बीच कचहरी में अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर भी किए गए। जिसके अनुसार किन्नर अखाड़ा, जूना अखाड़े के साथ-साथ रहेगा और एक दूसरे की परंपराओं, अनुष्ठान में शामिल होगा। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, हम जूना अखाड़े के साथ पेशवाई करेंगे लेकिन किन्नर अखाड़ा बना रहेगा, उसका किसी से भी विलय नहीं होगा। साथ ही आचार्य सहित सभी महामंडलेश्वर अपने-अपने पदों पर पूर्व की भांति बने रहेंगे। इतना ही नहीं वह अपनी किसी भी परंपरा को नहीं छोड़ेंगे। किन्नर अखाड़ा देवत्व यात्रा यानी अमरत्व स्नान सहित अन्य परंपराओं का निर्वाह करेगा।

यह समझौता ऐतिहासिक सिद्ध हुआ और इलाहाबाद में कुंभ स्नान के आरम्भ होते ही जूना अखाड़े के साथ किन्नर अखाड़ा प्रमुख लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने पेशवाई निकाली और त्रिवेणी में शाही स्नान किया। यह पहला अवसर था जब किन्नर अखाड़े ने कुंभ में शाही स्नान किया।

भारतीय संस्कृति उदार है किन्तु समाज में एक दोहरापन है जो सदियों से जेंडर के आधार पर सामाजिक अधिकार तय करता आ रहा है। स्त्रीलिंग और पुल्लिंग इन दोनों को समाजिक संरचना की धुरी माना गया। स्वाभाविक है। क्योंकि यही तो सृजनकर्ता हैं मानव जीवन के प्रवाह के। ये दोनों मिल कर जीवन का सृजन करते हैं और पीढिय़ों का निर्माण करते हैं। किन्तु इन दोनों लिंगों के इतर एक और जेंडर है जिसे समाज हिचकते हुए स्वीकार करता है। जहां तक भारतीय समाज का प्रश्न है तो उसने इस तीसरे जेंडर को धर्म, आशीषों और भय से जोड़ दिया। उसे सहज नहीं रहने दिया। एक विचित्र प्राणी की भांति उसे देखने की आदत डाल ली। एक ऐसा प्राणी जो दिखता तो मनुष्यों की तरह है किन्तु उसे सामान्य मनुष्यों की तरह जीने का अधिकार नहीं दिया गया। वह यदि घरों में आता है तो तालियां बजाते हुए आए। भड़कीले मेकअप से पुता रहे और दुआऐं दे कर जाए। फिर समाज ने एक भय भी पाला कि यदि वह तीसरा मानवीय प्राणी नाराज हो गया तो बद्दुआएं दे कर जाएगा इसलिए उसे खुश रखा जाए। उससे दुआएं लेने के लिए उसे चंद रुपए पकड़ा दिए जाएं।

यह विवरण भारतीय संस्कृति के उस विचार से मेल नहीं खाता है जिसमें प्रत्येक जीव के लिए अपनत्व और सद्व्यवहार की बात कही गई है। किन्तु दुर्भाग्यवश यह बेमेल विचार आज भी मौजूद है। सकारात्मक पक्ष यह कि यही विचार उस तीसरे मानवीय प्राणी को संघर्ष की प्रेरणा दे रहा है। जिसमें विचार है, संवेदना है वह सदा-सदा के लिए दलित अथवा उपेक्षित नहीं रह सकता है। एक न एक दिन वह सिर उठाता है, आगे बढ़ता है और समाज से अपना अधिकार मांगता है। एक और बहुत ही सकारात्मक तथ्य जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि इस “माइनॉरिटी जेंडर” ने अपने अधिकारों के पक्ष में आवाज़ उठाने के लिए “एग्रेसिवनेस” का सहारा नहीं लिया। उन्होंने स्वयं को साबित करने का रास्ता चुना। यह रास्ता लम्बा है लेकिन स्थायी परिणाम देने वाला सिद्ध होगा।

“तीसरा मानवीय प्राणी” शब्द समूह अटपटा लग सकता है किन्तु किन्नर, हिजड़ा क्या कम अटपटे सम्बोधन नहीं हैं? अब लिंगानुसार ‘थर्ड जेंडरÓ कहा जाना सर्वथा उचित लगता है। सारी दुनिया में थर्ड जेंडर अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं। इस दिशा में ब्रिटेन में भी एक ऐतिहासिक घटना घटी। ब्रिटेन के आवासीय स्कूलों के बच्चों ने अपनी पहचान सुनिश्चित करने के लिए मांग की कि उन्हें पुरुष पहचान पर आधारित सम्बोधन ‘ही अथवा स्त्री पहचान पर आधारित “शी” कह कर न पुकारा जाए अपितु “जी” कह कर पुकारा जाए। ब्रिटेन में “जी” को एक लिंग-निरपेक्ष उच्चारण माना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने बच्चों की इस मांग को गंभीरता से लिया और ब्रिटेन के आवासीय स्कूलों के शिक्षकों को आदेश दिया कि वे ट्रांसजेंडर बच्चों को “ही” या “शी” की बजाय “जी” कहकर बुलाएं ताकि वे असहज महसूस न करें। ब्रिटेन आवासीय स्कूल एसोसिएशन की ओर से जारी आधिकारिक दिशानिर्देश में शिक्षकों से अपील की गई कि वे ट्रांसजेंडर छात्रों को “जी” कहें। साथ ही, शिक्षकों से कहा गया कि वे उन्होंने ऐसे छात्रों की बढ़ती संख्या के लिए एक ‘नई भाषाÓ सीखने की जरूरत है जो “ही” या “शी” के तौर पर खुद पुकारा जाना पसंद नहीं करते।

यद्यपि भारत में थर्ड जेंडर की स्थिति योरोपीय देशों की तुलना में शोचनीय है। यहां नाचने, गाने, फूहड़ अभिनय करने वाले और बलात् पैसे वसूलने वाले के रूप में इनकी छवि स्थापित हो चुकी है। इस ओर समाज का ध्यान नहीं जाता है कि थर्ड जेंडर भी समाज का अभिन्न अंग है। इन्हें भी वे सारे अधिकार मिलने चाहिए जो एक स्त्री या पुरुष को मिलते हैं। अधिकारों के क्रम में सबसे पहला बिन्दु है माता-पिता का प्रेम और अपने परिवार में सामाजिक स्वीकृति। यह कितना कठिन होता होगा कि जब आप अपने माता-पिता के बारे में जानते हों फिर भी आप उनके साथ संबंध न रख सकें और उनके पास जा कर न रह सकें, वह भी मात्र इसलिए कि आप मनुष्य के रूप में प्रकृति की एक अनूठी संरचना हैं।

शबनम मौसी, कमला जान, आशा देवी, कमला किन्नर, मधु किन्नर और ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी वे नाम हैं जिन्होंने चुनाव में बहुमत से विजय प्राप्त कर के विधायक और महापौर तक के पद सम्हाले। देश की पहली किन्नर प्राचार्य मानबी बंदोपाध्याय और पहली किन्नर वकील तमिलनाडु की सत्य श्री शर्मिला ने सिद्ध कर दिया कि किन्नर अथवा ‘थर्ड ज़ेंडर” किसी भी विद्वत स्त्री-पुरुष की भांति बुद्धिजीवी वर्ग की किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं। किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने अपनी आत्मकथा लिखी ‘मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी। उन्होंने लम्बा संघर्ष किया। महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि “हम सनातन धर्म के हैं, उपदेवता हैं। हमने सालों संघर्ष झेला है। आज उसी संघर्ष का परिणाम है कि स्वयं इस धर्म मेले ने हमें अपनाया। संगम ने गोद में खिलाया। आज जितने भी किन्नर संन्यासियों ने यहां स्नान किया है, उनकी ओर से मैं पूरे मानव समाज के हित की कामना और प्रयास करती हूं। यह सनातन धर्म की ही महिमा हो सकती है कि जहां सालों तक संस्कृति और समाज से अलग रखा, वहीं सबसे बड़े संस्कृति के मेले ने बांहें फैलाकर हमारा स्वागत किया।”

इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि इसी प्रकार थर्ड जेंडर और समाज परस्पर एक-दूसरे को अपनाता रहेगा तो एक दिन समाज का नजरिया भी थर्ड जेंडर के प्रति बदल ही जाएगा और वे एक सामान्य मनुष्य की तरह जी सकेंगे।

यह लेखिका के व्यक्गित विचार हैं
डॉ. सुश्री शरद सिंह
साहित्यकार, विचारक, समाजसेविका
एम-एक सौ ग्यारह, शांतिविहार, रजाखेड़ी, सागर, मध्य प्रदेश

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