कुछ दिन पहले से ही ट्रेनिंग- गर्ल्स हॉकी टीम के लिए गल्र्स कॉलेज की ही टीम आगे आती है। कुछ पुरानी तो कुछ नई छात्राएं शामिल होती हैं। इन्हें विवि या खेल परिसर में स्पर्धा के कुछ दिन पूर्व प्रशिक्षण देकर तैयार किया जाता है। सागर में स्कूल में कहीं भी गल्र्स हॉकी टीम नहीं है, एेसे में कॉलेज में मुश्किल से खिलाड़ी मिल पाती हैं।
इतनी मेहनत की जरूरत
10 किलोमीटर औसतन दौडऩा पड़ता है एक मैच में
05 किमी रनिंग और दो घंटे की प्रैक्टिस रोजाना जरूरी
06 साल की प्रैक्टिस होनी चाहिए किसी टूर्नामेंट में खेलने के लिए औसतन कितने रुपए में क्या
02 हजार रुपए में किट
350 हाफ पेंट,
टी-शर्ट
950 हॉकी स्टिक
150 बॉल
1100 शूज
150 सिनगार्ड
150 मोजे
खिलाड़ी : शुरुआत ही कमजोर
राखी चौधरी बताती हैं, गर्मी में कोच मकसूद अहमद और अनवर खान द्वारा ट्रेनिंग कैम्प लगाए जाते हैं। इनमें काफी संख्या में लड़कियां आती हैं। फिलहाल बारिश और खेल परिसर के हॉकी ग्राउंड में काम लगा होने के कारण अपेक्षित प्रैक्टिस संभव नहीं है। इसके पीछे एक कारण संसाधनों की कमी भी है। खिलाडि़यों को शुरुआत में हॉकी सहित अन्य संसाधन न मिल पाने के कारण भी वे रुचि नहीं लेतीं।
अधिकारी : बचपन से प्रैक्टिस की जरूरत, ताकि आदत में आए
&गल्र्स कॉलेज की स्पोट्र्स ऑफिसर मोनिका हार्डीकर के अनुसार हॉकी जैसे खेल के लिए छात्राएं तैयार नहीं होतीं। बचपन से प्रैक्टिस न होने के कारण छात्राएं जल्दी थक जाती हैं। स्कूल स्तर से ही हॉकी खेलने की आदत डाली जानी चाहिए। संभाग में केवल गल्र्स कॉलेज की ही महिला हॉकी टीम बनती है।
कोच : फिर भी सिखाते हैं
हॉकी कोच मकसूद खान के अनुसार लड़कियां इतना वर्कआउट नहीं कर पातीं। पारिवारिक और सामाजिक कारणों के चलते भी लड़कियां हॉकी जैसे गेम्स से दूर रहती हैं। फिर भी जिला हॉकी संघ द्वारा इस वर्ष गर्मी में लड़कियों के लिए खेल परिसर में कैम्प लगाकर हॉकी सिखाई गई।