सागर

facts: 6 माह में लापता हो गए 150 नाबालिग बच्चे, अब तक नहीं लगा पता

हर साल बढ़ रहे मिसिंग के आंकड़े परिजनों को कर रहे परेशान, हर साल 50 से ज्यादा बच्चों का नहीं चलता पता…>

सागरJun 28, 2022 / 02:37 pm

Manish Gite

संजय शर्मा

सागर। जिले से जनवरी से जून माह के बीच 150 से ज्यादा नाबालिग घर से भागे हैं। इनमें से केवल 75 फीसदी बच्चे ही या तो स्वयं वापस लौटे हैं या पुलिस उन्हें तलाशकर घर वापस पहुंचने में कामयाब रही है। बाकी 25 फीसदी बच्चे कहां गए और अब वे किस हाल में हैं यह किसी को नहीं पता।

उधर परिजन अपने बच्चों की तलाश में भटक रहे हैं तो दूसरी ओर पुलिस चुनाव की व्यस्तता दिखाकर करीब डेढ़ माह से टाल-मटोल भरा रवैया अपनाए हुए है। यह स्थिति केवल सागर जिले की नहीं पूरे बुंदेलखण्ड की है। चाहे टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और निवाड़ी हो या दमोह, प्रत्येक जिले से हर महीने 15 से 25 बच्चे लापता हो रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों की गुमशुदगी के ये आंकड़े चिंताजनक हैं।

 

प्रदेश से लापता हजारों बच्चों का भी नहीं सुराग

मप्र चाइल्ड हेल्पलाइन आंकड़ों के अनुसार प्रतिदिन मप्र से 30 से ज्यादा किशोर- किशोरी बच्चे लापता होते हैं। जबकि साल भर में यह आंकड़ा 10 से 11 हजार पर पहुंच जाता है। पूरे प्रदेश से लापता इन बच्चों में से रिकवरी केवल 8 से 9 हजार बच्चों की ही हो पा रही है। यह आंकड़ा मानव तस्करी, बाल मजदूरी के लिए बच्चों के उपयोग के लिए उन्हें दूसरे राज्यों तक ले जाने की आंर इशारा करता है।

 

फैक्ट फाइल

250 से ज्यादा बच्चे हर साल सागर से मिसिंग हो रहे
75- 80 फीसदी की ही हो पाती है घर वापसी
50 से अधिक नाबालिगों का जनवरी से जून के बीच नहीं लगा पता
15 से ज्यादा बच्चे बुंदेलखण्ड के हर जिले से प्रतिमाह होते हैं मिसिंग
144 बच्चे ऑपरेशन मुस्कान के तहत जनवरी में बरामद किए गए थे

 

 

बुंदेलखण्ड से बच्चों की गुमशुदगी चिंताजनक

सागर के अलावा टीकमगढ़, दमोह और छतरपुर जिलों से भी जनवरी से अब तक करीब 500 नाबालिग गायब हैं। करीब एक साल पहले खुरई अंचल में एक किशोरी ने रिश्तेदार द्वारा उसे उत्तर प्रदेश में बेचे जाने जबकि खिमलासा थाना क्षेत्र की एक किशोरी ने शादी के नाम पर रुपए लेकर बेचने के आरोप लगाए थे। बण्डा, सुरखी, देवरी, बीना क्षेत्र से भी कुछ लापता किशोरियों का महीनों बाद अब तक कोई पता नहीं चला है।

 

आकर्षण, बाल मजदूरी, ह्यूमन ट्रैफिकिंग लापता होने की बड़ी वजह

नाबालिग बच्चों के लापता होने का आंकड़ा साल- दर साल बढ़ता जा रहा है। ऐसा नहीं कि पुलिस द्वारा इन बच्चों की तलाश नहीं की जाती लेकिन जिस संख्या में बच्चे लापता हो रहे हैं वापसी का आंकड़ा उससे काफी कम होना परिवार और समाज की चिंता बढ़ा रहा है। पुलिस ने पिछले कुछ महीनों में ऑपरेशन मुस्कान चलाकर बड़ी संख्या में लापता बच्चों को तलाशकर उन्हें परिवार को सौंपा है। यह आंकड़ा भी काफी बढ़ा है लेकिन इसे संतोषजनक अभी भी नहीं कहा जा सकता। बच्चों के अचानक लापता होने के पीछे कई वजह हैं। इनमें किशोर अवस्था में लड़कों के प्रति आकर्षण और सामाजिक बंधनों की वजह से लड़कियों के भागने के मामले सबसे ज्यादा हैं। हालांकि रिकवरी की संख्या भी इनकी ही सबसे अधिक है। वहीं बाल मजदूरी के लिए बच्चों को प्रलोभन देकर भगाकर ले जाने और उनसे दूसरे राज्यों में कारखानों, निर्माण कार्यों में मजदूरी कराने के अलावा परिवार के प्रतिबंधों से परेशान बच्चों के भागने के मामले भी सामने आते रहे हैं।

 

जिले से हर साल 250 से ज्यादा नाबालिग मिसिंग होते हैं। इनमें से 180 या 220 बच्चों की ही घर वापसी हो पाती है जबकि अन्य 35 से 50 बच्चे कहां गायब हो जाते हैं इसका पता तक नहीं चल पाता। जिले की जुबेनाइल शाखा के रिकॉर्ड में बच्चों की मिसिंग के आंकड़ों को वर्षवार देखें तो स्थिति की गंभीरता समझी जा सकती है लेकिन नाबालिगों की दस्तयाबी के गोलमोल आंकड़े इस गंभीरता पर पर्दा डालने का काम करते हैं। पुलिस वर्ष में मिसिंग संख्या के विरुद्ध दस्तयाबी की जो संख्या दिखाती है वह पूर्व के वर्षों से लापता बच्चों के साथ होती है जबकि हाल के वर्ष में लापता बच्चों की संख्या स्पष्ट नहीं दिखाई जाती।

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