गुजराती ने बढ़ाया ज्ञान का भंडार
साहित्यकार डॉ. चंचला दवे मूलत: गुजराती हैं। इनका अध्ययन,अध्यापन,लेखन हिंदी पर ही केन्द्रित है। उन्होंने बताया कि गुजराती होने के कारण मुझे सागर और सागर के बाहर कई सम्मान मिले। उन्होंने बताया कि अभी वर्ष 2018 में मेरी काव्यकृति गुलमोहर के प्रकाशित होने पर सम्मानित किया गया। जबलपुर में आयोजित गुजराती बाज खेडावाल समाज के रजत जयंती समारोह में राज्यपाल आनंदी बैन पटेल ने सम्मानित किया। गुजरात के लोग तुझे सम्मान देते है, वे हिंदी को कठिन भाषा समझते हैं। इसके अलावा मुझे मराठी, संस्कृत, अंग्रेजी भी आती है। उन्होंने बताया कि हमारा देश सतरंगी भाषाओं को अपने में समाहित करता है।
बोलने और पढऩे में मिलता है अद्भुत आनंद
शासकीय कन्या महाविद्यालय बीना में प्राध्यापक प्रो. संध्या टिकेकर की मराठी मातृभाषा है। उन्होंने बताया कि मराठी में बोलने लिखने और पढऩे का आनंद अद्भुत है । यह सरल मधुर और ह्रस्व स्वरों की अधिकता वाली भाषा है। इसका अपना समृद्ध साहित्य है। मराठी नाट्य मंच पूरी गरिमा के साथ आज भी जीवित है , जो हजारों कलाकारों को आजीविका देता है । चूंकि मेरी अभिरुचि अनुवाद कार्य में है , सो हिंदी और मराठी जैसी दो संपन्न भाषाओं के साथ जीने का अवसर मुझे रोमांचित करता है, आल्हादित करता है। हिंदी कवि प्रोफेसर मणि मोहन मेहता, गंजबासौदा की कृति शायद का मराठी भाव अनुवाद मैंने कदाचित नाम से किया है। मराठी संस्कृत के निकट की भाषा है इसलिए उच्चारण में शुद्धता मुझे संस्कृत से मिली है। संस्कृत और हिंदी के साथ साथ मेरी मातृभाषा मराठी प्रणम्य है।
लेखन में दिखते हैं शब्द
हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष झा ने बताया कि मूलत: उनकी भाषा मैथली है। मैथली भाषा उत्तर बिहार और नेपाल में पाई जाती है। उन्होंने बताया कि इस भाषा में मिठास और ये हिन्दी व बंगाला से प्रभावित है। उन्होंने बताया कि मातृभाषा आने से जब हम अन्य कोई भाषा सीखते हैं तो वह हमारे दिमाग में चित्रित हो जाती है। उन्होंने बताया पिताजी आर्मी में थे इससे भोजपुरी, अवधी, बुंदेली, हिन्दी और अंग्रेजी भी आती हैं। डॉ. झा ने बताया कि जब गीता को गीत में पिरोया तो मैथली भाषा की वजह से बदुत फायदा होता है। उससे शब्दों का भंडार मेरे पास है।