धमाके में लॉरी में सवार ६ जवानों की मौत हो गई थी, जबकि छह जख्मी हुए थे।
सागर•Mar 20, 2018 / 04:44 pm•
गुलशन पटेल
Shahadatta is facing a lot of carelessness
सागर. अफसरशाही जो करे वो कम है। ओड़ीशा के नक्सल प्रभावित रायगढ़ा जिले के गोदलपदर में ११ अगस्त २००२ को बारुदी सुरंग के विस्फोट में सीआरपीएफ जवान प्रदीप लारिया की मौत को मप्र शासन का गृह विभाग १५ साल से शहादत मानने से इनकार कर रहा है। सीआरपीएफ की टुकड़ी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गश्त पर निकली थी, तभी वे नक्सलियों द्वारा बिछाई बारुदी सुरंग की चपेट में आ गए थे। धमाके में लॉरी में सवार ६ जवानों की मौत हो गई थी, जबकि छह जख्मी हुए थे। न्यायिक जांच व सीआरपीएफ की विभागीय जांच में नक्सली विस्फोट में जवानों की मौत की पुष्टि भी की गई लेकिन मप्र शासन के गृह (सामान्य) विभाग ने इसे भी दरकिनार कर दिया।
सीआरपीएफ की जांच को भी नकारा
अगस्त २००२ में सीआरपीएफ की ३४ वी बटालियन में पूर्वी सेक्टर के ओडीशा में रायगढ़ा जिले में तैनात आरक्षक प्रदीप लारिया की बारुदी सुरंग धमाके में मौत हो गई थी। सीआरपीएफ पूर्वी सेक्टर कोलकाता महानिरीक्षक के आदेश आई-दस- ३४/०२-पू.सै.-स्था.३(परिचालन) दिनांक १६ अगस्त ०२ के अनुसार एसके मिश्रा सीआरपीएफ उपमहानिरीक्षक भुवनेश्वर को जांच सौंपी गई। न्यायिक जांच भी कराई गई जिसमें स्पष्ट तौर पर पहले क्रम में सभी ६ जवानों की मौत भारत सरकार के हितार्थ, सक्रिय ड्यूटी पर तैनाती के दौरान नक्सल प्रभावित रायगढ़ा जिले के गोदलपदर के निकट नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप द्वारा बिछाई सुरंग के धमाके में होना माना गया है। जांच में आश्रितों को निर्धारित सभी लाभ-अनुदान देने की भी अनुशंसा की गई है। वहीं इसके विरुद्ध जब शहीद प्रदीप लारिया की वृद्ध मां ने आवेदन किया तो मप्र शासन गृह (सामान्य) विभाग के तत्कालीन अवर सचिव ने कलेक्टर सागर को २ अगस्त २००३ में पत्र १७०२/१०६२/ २००३/ दो-ए(३) भेजकर उनकी मौत को सैन्य कार्रवाई या युद्ध में नहीं होने पर अनुदान की पात्रता को नकार दिया। विभाग के अफसर ने सीआरपीएफ कमांडेंट भूपेन्द्र ङ्क्षसह द्वारा उनकी शहादत के बाद जारी किए गए शहीद प्रमाण पत्र को भी खारिज कर दिया।
शहीद के साथ की जा रही मनमानी
शहीद प्रदीप लारिया को सम्मान दिलाने के लिए उनके परिजन १५ साल से सागर से लेकर भोपाल तक कई चक्कर काट चुके हैं। जनप्रतिनिधियों और अफसरों की दुहाई देने के बाद भी स्थिति यह है कि किसी को उनके दस्तावेजों को गौर से पढऩे तक की फुरसत नहीं है। अधिकारी २००३ में अवर सचिव द्वारा लिखी गई दो लाइन में लारिया की शहादत को नकार देने वाली टिप्पणी पढ़कर ही रुक जाते हैं।
दूसरे जवानों को मान लिया शहीद
शहीद के भाई ने बताया कि अफसर मनमानी कर नियम गढ़ रहे हैं। अफसर कहते हैं यह शहादत नहीं है जबकि इसी तरह के मामलों में वर्ष २००० में बैतूल के सीआरपीएफ सिपाही शंकर लाल वैकर, वर्ष २००१ में उनके ही भाई सुनील कुमार लारिया को बारुदी सुरंग के धमाके और वर्ष २००० में छतरपुर के सिपाही डीडी पटेल की बारुदी सुरंग के विस्फोट में मौत के मामले को शहादत मानकर उनके आश्रितों को अनुग्रह अनुदान दिए गए हैं।