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सागर

रचनाकार के अलावा स्त्री स्वतंत्रता के समर्थक थे टैगोर, ये लिखा रचनाओं में

आज रवीन्द्रनाथ टैगोर जयंती पर विशेष

सागरMay 07, 2019 / 02:40 pm

manish Dubesy

Special on Rabindranath Tagore Jayanti today

Special on Rabindranath Tagore Jayanti today

सागर. आज नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती है। उनका जन्म का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया। जयंती के मौक पर शहर के साहित्यकारों से पत्रिका ने बात की और जाना क्या कहता था उनका लेखन।
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सुरेश आचार्य ने बताया कि रवीन्द्रनाथ टैगोर बड़े रचनाकार थे। उन्होंने गीतांजली का लेखन किया था। वे एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने ही अपनी कविता के माध्यम से बताया कि तुम्हारी कोई नहीं सुनता तो अके ले चलते चला। साथ उन्होंने बताया कि भारत कैसे विभिन्न जातियों का देश बन बन गया। कविता में बताया कि पहले आर्य आए, तीनी आए, मुगल आए और फिर अंग्रेज भी आए। भारत विभिन्न में विभिन्न जातियों के लोग आकर बस गए।

यह भी जानें
रवींद्र नाथ अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से रबी बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था।
दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया।
बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्र नाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के काव्य पक्ष के साथ ही उनका कहानीकार पक्ष भी बहुत प्रभावित करता है, इसीलिए मैंने स्त्री विमर्श की अपनी पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरेंÓ में ‘टैगोर, स्त्री और प्रेमÓ शीर्षक से एक विस्तृत लेख लिखा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर मानवीय भावनाओं के चितेरे कवि ही नहीं वरन् एक संवेदनशील कथाकार भी थे। टैगोर की कहानियों में तत्कालीन समाज, मानव प्रकृति व प्रवृत्ति, एवं मानव मनोविज्ञान अपने समग्र रूप में उभर कर आया है। जैसे ‘माल्यदानÓ कहानी की ‘बिन्नीÓ को लें, जिसके द्वारा रवीन्द्रनाथ ने प्रेम के प्रति स्त्री की मौन साधना को वर्णित किया। या फिर कहानी ‘प्रेम का मूल्यÓ को लें, जिसमें महाभारतकालीन पात्र ‘देवयानीÓ के माध्यम से उन्होंनें स्त्री गरिमा को स्थापित किया।
डॉ. शरद सिंह, लेखिका एवं समाजसेवी

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