इससे पहले यहां आपको बता दें कि फैसले पर कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार में गरीमामय मरने का अधिकार भी शामिल है। इसके साथ ही इस मुददे पर कानून न बनने तक एक गाइडलाइन जारी कर दी गई। केन्द्र सरकार ने अपने हलफनामे में इच्छा मृत्यु को लेकर सभी बिंदुओं विचार किए जाने और इससे जुड़े सामाजिक संगठनों से सुझाव मांगने की बात कही थी। बता दें कि एक गैर-सरकारी सामाजिक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लिविंग विल का अधिकार दिए जाने की मांग उठाई थी।
लोगों ने इस तरह रखे अपने विचार
इच्छा मृत्यु जैसे कठिन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त निर्णय ले लिया है। जिस पर आम लोगों ने अपने ही तरीके से प्रतिक्रिया दी है। दमोह के आशीष नायक का कहना है कि यह निश्चित ही बड़े अध्ययन करने के बाद लिया गया कठिन निर्णय है। जिसका स्वागत होना चाहिए। इच्छा मृत्यु मांगने के मामले काफी सामने आ चुके है, लेकिन क्या वास्तव में कोई इच्छा मृत्यु ले सकता है, इस पर विचार करना असंभव जैसी स्थिति उत्पन्न करता है।
इच्छा मृत्यु जैसे कठिन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त निर्णय ले लिया है। जिस पर आम लोगों ने अपने ही तरीके से प्रतिक्रिया दी है। दमोह के आशीष नायक का कहना है कि यह निश्चित ही बड़े अध्ययन करने के बाद लिया गया कठिन निर्णय है। जिसका स्वागत होना चाहिए। इच्छा मृत्यु मांगने के मामले काफी सामने आ चुके है, लेकिन क्या वास्तव में कोई इच्छा मृत्यु ले सकता है, इस पर विचार करना असंभव जैसी स्थिति उत्पन्न करता है।
टीमकगढ़ के देवेंद्र महोबिया कहते है कि काफी लंबे समय से सुरक्षित रखा गया यह फैसला इतने दिनों बाद आया है, तो निश्चित ही काफी विचार मंथन के बाद ही आया होगा। जिसका स्वागत होना चाहिए। इच्छा मृत्यु भारत जैसे देश में कम ही लोग मांगते है, लेकिन फैसला सशर्त है, जिसका दुरुपयोग लोग नहीं कर सकते है।
सागर के महेश बगावत का कहना है कि इच्छा मृत्यु एक व्यक्ति क्यों मांग सकता है, निश्चित ही इस पहलू के विशेष अध्ययन के बाद ही यह निर्णरू लिया गया होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चित ही स्वागत के योग्य है।
छतरपुर के हनीफ कुरैशी का कहना है कि फैसला स्वागत योग्य है। बीना के अविरल जैन कहते है कि फैसले में थोड़ा और बदलाव होना चाहिए था। जिसकी भविष्य में संभावना है। इसी तरह अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे।
भारत में गैर कानूनी कृत्य है
आपको यह बता दें कि भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही गैर-कानूनी कृत्य हैं, क्योंकि मृत्यु का प्रयास, जो इच्छा के कार्यावयन के बाद ही होगा, वह भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का अपराध है। इसी तरह से दया मृत्यु, जो भले ही मानवीय भावना से प्रेरित हो एवं पीडि़त व्यक्ति की असहनीय पीड़ा को कम करने के लिए की जाना हो, वह भी भारतीय दंड विधान आईपीसी की धारा 304 के अंतर्गत सदोष हत्या का अपराध माना जाता है।
आपको यह बता दें कि भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही गैर-कानूनी कृत्य हैं, क्योंकि मृत्यु का प्रयास, जो इच्छा के कार्यावयन के बाद ही होगा, वह भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का अपराध है। इसी तरह से दया मृत्यु, जो भले ही मानवीय भावना से प्रेरित हो एवं पीडि़त व्यक्ति की असहनीय पीड़ा को कम करने के लिए की जाना हो, वह भी भारतीय दंड विधान आईपीसी की धारा 304 के अंतर्गत सदोष हत्या का अपराध माना जाता है।
यह है फैसले के 5 अहम बिन्दु 1— सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इंसानों को भी पूरी गरिमा के साथ मौत को चुनने का हक है।
2— फैसले में अब लाइलाज लोगों या जीवन रक्षक प्रणाली पर जी रहे लोगों को प्राण त्यागने की अनुमति होगी।
3— ऐसे लोगों को लिविंग बिल ड्राफ्ट करने की भी अनुमति होगी, जो कॉमा में रहने या लाइलाज बीमारी से ग्रसित हैं व इच्छा मृत्यु चाहते हैं।
4— देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 जजों की संविधान पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
5— इस पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण,जस्टिस एएम खानविलकर भी शामिल रहे।
2— फैसले में अब लाइलाज लोगों या जीवन रक्षक प्रणाली पर जी रहे लोगों को प्राण त्यागने की अनुमति होगी।
3— ऐसे लोगों को लिविंग बिल ड्राफ्ट करने की भी अनुमति होगी, जो कॉमा में रहने या लाइलाज बीमारी से ग्रसित हैं व इच्छा मृत्यु चाहते हैं।
4— देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 जजों की संविधान पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
5— इस पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण,जस्टिस एएम खानविलकर भी शामिल रहे।