जब जिब्राईल स्वर्गदूत मरियम के पास आया तो मरियम घबरा गईं, क्योंकि उस समय स्वर्गदूत का दर्शना पाना दुर्लभ था। स्वर्गदूत ने मरियम से कहा आनंद और जय तेरी हो। जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है। प्रभु तेरे साथ है। स्वर्ग दूत ने मरियम से कहा देख तूं गर्भवती होगी और तेरे तुम्हे एक पुत्र उत्पन्न होगा। तूं उसक नाम यीशु रखना। वह महान होगा और परम प्रधान का पुत्र कहलाएगा। हां, यह सारी बात तो आनंद की हैं, लेकिन एक कुंवारी पुत्र जनेगी, यह बात हजम नहीं होती। तब मरियम ने स्वर्गदूत से कहा यह कैसे होगा। मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं अर्थात कोई पुरुष से संबंध ही नहीं है। मेरी तो केवल मंगनी ही हुई है। मरियम की मंगनी युसूफ के साथ हुई थी और अभी तक शादी नहीं हुई। कोई शारीरिक संबंध अभी नहीं बने और यदि शादी नहीं हुई और बालक उत्पन्न हो गया तो उस समय यहूदी परंपरा के अनुसार ऐसी स्त्री का चरित्र विपरीत माना जाता था। और उसे पत्थर वाह करके मार डालना कोई गलत बात नहीं होती थी। लेकिन मरियम ने इस आनंद के समाचार को संसार में लाने के लिए उस संघर्षकी परवाह करे बिना ही उसे स्वीकार कर लिया था।
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युसूफ एक धर्मी व्यक्ति था। समाज में इसका मान सम्मान होगा और मरियम गर्भवती पाई गई तो वो युसूफ ने एक योजना बनाई की वह मरियम को या अपनी होने वाली पत्नी को चुपके से त्याग देता है, जिससे मरियम बदनाम भी न हो और वह भी बच जाएं। लेनिक संघर्ष की इस श्रृंखला में केवल मरियम को ही नहीं जुडऩा था उसमें युसूफ को भी जुडऩा था। ओर वहीं स्वर्गदूत स्वप्न ने युसूफ के पास पहुंचा और उसे कहा तूं अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आ, उससे मत डर। क्योंकि जो उनके गर्भ में है वह पवित्र आत्मा की ओर से है। तब युसूफ को सारी बात समझ में आ गई और उसने उस संघर्ष भरे समय को स्वीकार कर लिया। जिससे वह भी उस आनंद में सम्मिलित हो सके। युसूफ धार्मिक था। इस कारण वह परमेश्वर की योजना को आसानी से समझ गया था।
संघर्ष से ज्योतिषि भी अछूते नहीं रहे। क्योंकि उन्हें भी उस आनंद को पाना था जो संघर्ष के वक्त का था। ज्योतिषि तारों और नक्षत्रों का ज्ञान रखने वाले उनकी ज्योतिष विद्या के द्वारा यह पता चल गया था कि यहुदियों का राजा यीशु मसीह का जन्मयरूशलेम में होना है। इसलिए वह लोग तारों का अध्ययन करते हुए यरूशलेम तक पहुंच गए। यह सफर अभी तक थका देने वाला था। खर्चीला था। तकलीफों से भरा था। कोई सांसारिक लाभ देने वाला नहीं था। रास्ता भटका देने वाला था। गहन अध्ययन से भरा, थना देने वाला संघर्ष ही संघर्ष से भरा था। लेकिन इनका यह संघर्ष आनंद में बदल गया। जिस तारे की खोज में थे उन्हें वह तारा मिल गया जो उनके लिए आनंद का समय था। और सही स्थान पर पहुंचकर बालक यीशु के दर्शन हुए। तभी सोना, गंधरस सहित अन्य भेंट चढ़ाए गए। इन ज्योतिषियों के जीवन में सबसे संघर्ष से भरी यात्रा जो बड़े आनंद में बदल गई।
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गड़रिये रात में रहकर पहरा दे रहे थे। वह मैदान के थे और अपने-अपने झुंडका पहरा दे रहे थे। ऐसा माना जाता है कि यह भेड़ों के बच्चे जनने का समय था और गड़रिये पहरा इसीलिए दे रहे थे कि यदि कोई भेड़ बच्चा जनती हैं तो गड़रिया उकी देखभाल कर सके। नहीं तो कोई भेडिय़ा उनका आसानी से शिकार कर लेगा और उन्हें नाश कर देगा।उसी समय एक दूत उनके पास खड़ा हो गया और प्रभु का तेज चारों ओर चमका और सभी डर गए। तब स्वर्गदूत ने कहा मत डरो, क्योंकि मैं तुम्हें बड़े आनंद का समाचार देने आया हूं। जो सब लोगों के लिए होगा कि आज दाउद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता आया है। अब चरवाहों के लिए सबसे बड़ा संघर्ष था कि वह अपनी भेड़ों को छोड़कर उद्धारकर्ता को देखने जाए। लेकिन उन गड़रियों ने उस संघर्ष को स्वीकार किया। जिससे वह बालक यीशु को देख सके। स्वर्गदूतों की कही बातों पर विश्वास करके वह बेललहम गए और यीशू का दर्शन पाया। संघर्ष के बाद आनंद प्राप्त हुआ।