2018 independence day real story : 1857 की क्रांति से पहले 1842 में यहां हुई थी पहली क्रांति
अभाना के दीवान बहादुर सिंह थे पहले क्रांतिकारी
Thaana’s Diwan Bahadur Singh was the first revolutionary
दमोह. 1857 की क्रांति तो देश के इतिहास व गजेटियर में दर्ज है, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति 1842 में दमोह में हुई थी और इसके पहले क्रांतिकारी अभाना के दीवान बहादुर सिंह थे। जिनके संबंध में जबलपुर युनिवर्सिटी के प्रोफेसर जय प्रकाश मिश्रा ने शोध कार्य करते हुए अपनी पुस्तक बुंदेला विद्रोह में इसका उल्लेख किया है। पुस्तक के बाद अन्य शोधार्थियों ने 1857 की क्रांति के पहले दमोह से शुरू हुई आजादी की 1842 की क्रांति का उल्लेख अपने शोधपत्रों में किया है।
साहित्यकार व लेखिका सुसंस्कृति परिहार पत्रिका से आजादी की दास्तां की यादें साझा करती हुईं बताती हैं कि यह गौरव की बात है कि 1857 से पहले आजादी की लड़ाई दमोह के अभाना से लड़ी गई जो गौरव की बात है, लेकिन इतिहास इनके बारे में अब तक मौन क्यों है, यह समझ से परे है। सुसंस्कृति परिहार ने बताया कि अभाना के दीवान बहादुर सिंह व उनके चचेरे भाई हटरी के राजा मधुकर शाह के बीच झगड़ा था। जिससे नाराज होकर बहादुर सिंह ने ब्रिट्रिश सरकार में अपनी सेवाओं की पेशकश कर दी। इसके बाद उनका हृदय परिवर्तन ऐसा हुआ कि उन्होंने अंग्रेजों का मुखर विरोध शुरू कर दिया। वह अंग्रेजी सरकार के सामने घुटने टेकने नहीं पहुंचे तो उन्होंने अपना कर्मचारी अभाना भेजा। जब बहादुर सिंह नहीं माने तो अगले दिन अंग्र्रेजों का कर्मचारी व साथ आए सैनिकों ने बहादुर सिंह की सेवा में लगे नाई को बंधक बना लिया। बहादुर सिंह ने अपने 13 समर्थकों के साथ नाई को छुड़ा ले गए। इसके बाद उन्होंने खुला आह्वान किया कि अंग्रेजों की लड़ाई में जो उनके साथ आना चाहे वह आ जाए। इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली जंग का शुभारंभ दमोह जिले के अभाना गांव से हो चुका था।
उधर जबलपुर में मिल रही गुप्त सूचनाओं से जबलपुर में कैप्टन चाल्र्स ब्राउन चौकन्ना हो गया। उसने बहादुर सिंह को बुलवाने परवाना भेजा, लेकिन वह नहीं गए। बहादुर को गिरफ्तार करने राजा हटरी से भी मदद मांगी। उसे भय था कि झगरी के ओमेंद्र सिंह जो भी अंग्रेजों की खिलाफत कर रहे हैं यदि इनसे दीवान बहादुर का मिलन हो गया तो अंचल में विद्रोह फैल जाएगा। आमेंद्र सींग के भोपाल क्षेत्र के लेबलपुर के आसपास होने तथा देवरी की ओर बढऩे की संभावना थी। अंग्रेज सेना का एक दल देवरी और दो पैदल कंपनियां दमोह भेजने की चाल्र्स ब्राउन ने गुजारिस अपने अधिकारियों से की थी।
5 अक्टूबर 1942 को दीवान बहादुर व उनके समर्थकों ने तेजगढ़ से 6 मील उत्तर पश्चिम में ग्राम दिनारी में अंग्रेजों के खास खुमान चौधरी के घर लूटपाट की थी। जिससे अंग्रेजी सेना बौखला गई। दमोह का तहसीलदार 40 सवार व 20 पैदल सैनिकों को साथ लेकर स्वयं अभाना गया। उसने दीवान बहादुर सिंह के मुख्तियार और एजेंट लक्ष्मण सींग को पकड़ लिया, जो उसके साथ शामिल थे। शेष लोग भाग खड़े हुए, जिनमें 500 विद्रोही शामिल थे। विद्रोहियों पर मोहरा मझंगाव के पास तहसीलदार ने आक्रमण किया जिसमें 20 क्रांतिकारी मारे गए।
इस लड़ाई के बाद दीवान बहादुर सिंह व उनके साथी भागने में सफल रहे। अंग्रेजी सेना ने पहले दो हजार रुपए का इनाम घोषित किया। बहादुर सिंह समर्थकों के साथ हीरापुर चले गए, उनके साथ आजादी की लड़ाई में हीरापुर के राजा व 47७ लोग शामिल हो गए। बिट्रिश सरकार ने 19 दिसंबर 1942 को एक ओर घोषणा कर अन्य विद्रोहियों पर लगभग 10-10 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की। इनाम के लालच में हीरापुर के राजा हिरदेशाह को पूरे परिवार के साथ उप्र के चुनार भेज दिया गया। इधर बहादुर सिंह व उनके समर्थक को भी जबलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जबलपुर के कैप्टन ब्राउन ने बहादुर सिंह को कड़े दंड देने की सिफारिश की थी। जनवरी 1843 तक लगभग सभी विद्रोहियों को पकड़ लिया गया या उन्हें समर्पण करने मजबूर किया गया। लेकिन 1842 की क्रांति का सूत्रपात बहादुर सिंह ने करते हुए अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था, उनके आंदोलन के बाद ही दमोह को अंग्रेजों ने अपनी छावनी में बदल दिया था, जिसके 1857 का विद्रोह भी तीव्रता से हुआ था। 1842 के बाद बहादुर सिंह व अन्य विद्रोहियों का आगे क्या हुआ इतिहास मौन है। लेकिन दमोह से आजादी की पहली क्रांति का सूत्रपात हुआ है यह दमोह के लिए बड़े गौरव और फर्क की बात है।
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