माह-ए-रमजान में आज भी देवबंद में सहरी में राेजदाराें उठाने के लिए मोहल्ले-मोहल्ले गली-गली में ढाेल भी बजाया जाता है। पुराने लाेगाें की मानें ताे यह परम्परा दशकों से चली आ रही है। साइकल और रिक्शा पर दीनी नात-ए-पाक चलाकर ऐलान कर उठाया जाता है। इतना ही नहीं इफ्तार के लिए भी दारुल उलूम और जामा मस्जिद समेत दूसरें मदरसों से घंटा और सायरन बजाकर रोजा खोलने की जानकारी दी जाती है।
उलेमाओं के अनुसार माह-ए-रमजान का रोजा इस्लाम मजहब के मानने वाले मर्द हो या औरत सभी बालिगों (व्यस्कों) पर फर्ज है। सदियों से देवबंद में सहरी और इफ्तार में घंटा बजाकर रोजा खोलने और बंद करने को सूचित किया जाता है। सहरी से एक घंटे पहले तक नगर के मोहल्लो में यह आवाजें आप सुन सकते हैं। इनमें ढाेल बजा कर उठाने वाले हों या रिक्शा एवं साइकिल पर माइक लगा उठाने वाले ये सभी गली-गली मोहल्ले-मोहल्ले फिरते है। इस कार्य के लिए के लिए अलग से भी काेई पैसा नहीं मिलता। सहरी में उठाने वाले अपनी मर्जी से यह कार्य करते हैं।
देवबंद नगर में दर्जन से अधिक लोग ढ़ोल और रिक्श व साईिकल पर सहरी में उठाने के लिए स्वंय निकलते हैं। इतना ही नहीं दारुल उलूम और मरकजी जामा मस्जिद में बाकायदा बड़े घंटे लगाए गए हैं जिन्हें समय से बजाकर रोजा बंद होने और रोजा खोलने की सूचना दी जाती है। इन सभी के बावजूद अधिकांश राेजगार दारुल उलूम और मरकजी जामा मस्जिद के घंटो पर ही रोजा खोलते और बंद करते हैं।