आप साेच रहे हाेंगे कि आखिर यह कैसी उलझन है ? इस उलझन का एक बड़ा कारण है। दरअसल एफआईआर कराने वाले कर्मचारी ने तहरीर में यह ताे लिख दिया कि फाइल गुम हाे गई है लेकिन यह फाइल कहां से गुम हुई इसका सही जिक्र एफआईआर में नहीं किया गया है। निकाय लिपिक राजीव भसीन की ओर से जाे एफआईआर कराई गई है उसमें यही लिखा गया है कि पत्रावली ऑफिस में नहीं मिली है इस संबंध में संबंधित विभाग और मंडलायुक्त कार्यालय से भी पत्राचार किया गया लेकिन वहां से भी पत्रावली नहीं मिली।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर पत्रावली यानी कर्मचारी की फाइल कहा गई ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या जिलाधिकारी का कार्यालय भी सुरक्षित नहीं ? क्या जिलाधिकारी के कार्यालय से भी फाइल चाेरी की जा सकती है ? अगर इन सवालाें का जवाब हां में आता है ताे फिर सबसे बड़ा सवाल यह हाेगा कि आखिर जिलाधिकारी के कार्यालय से फाइल चाेरी काैन कर सकता है ? अब इन सभी सवालाें के जवाब जांच अधिकारी काे तलाशने हैं लेकिन मुकदमा दर्ज हाेते ही कर्मचारियाें में हड़कंप मचा गया है।
यह है पूरा मामला नगर पालिका परिषद देवबंद में तैनात कर्मचारी इस्लामुद्दीन काे सस्पेंड कर दिया गया था। बाद में तत्कालीन मंडलायुक्त
commisnor ने कर्मचारी काे बहाल करते हुए फाइल जिलाधिकारी DM काे भेज दी थी लेकिन इसके बाद से फाईल गायब है। फाइल गायब हाेने से कर्मचारी काे सरकारी याेजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा था ताे कर्मचारी ने हाईकाेर्ट में गुहार लगाई। हाईकाेर्ट ने जब इस मामले का संज्ञान लिया ताे अब काेतवाली सदर बाजार पुलिस ने मुकदमा दर्ज पूरे प्रकरण की जांच शुरु कर दी है।
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