scriptबाबरी मस्जिद को लेकर मुसलमानों के इस बड़े संगठन ने अंतरराष्ट्रीय अदालत जाने से किया इनकार | Muslim org Jamiyat Ulema will not go international court | Patrika News
सहारनपुर

बाबरी मस्जिद को लेकर मुसलमानों के इस बड़े संगठन ने अंतरराष्ट्रीय अदालत जाने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट को बताया देश की सबसे बड़ी अदालत
सुप्रीम कोर्ट के अलावा किसी और अदालत का नहीं करेंगे रुख

सहारनपुरNov 16, 2019 / 07:08 pm

Iftekhar

bab.jpg

 

देवबंद. जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiyat ulma-e-hind) के प्रमुख अरशद मदनी ने जहां वक्फ बोर्ड से मस्जिद के लिए जमीन नहीं लेने की बात कही है। वहीं, बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत (International court of justice) का दरवाजा खटखटाने से भी साफ इनकार कर दिया है। मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे ऊंची अदालत है। हम इसके अलावा किसी और अदालत का रुख नहीं करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि यह मामला सिर्फ मस्जिद का मामला नहीं था, बल्कि मुसलमानों के अधिकारों का मामला था। एक मस्जिद हमेशा एक मस्जिद होती है, चाहे कोई उसमें नमाज पढ़े या नहीं।


हालांकि, मौलाना मदनी ने बाबरी मस्जिद के बदले सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए 5 एकड़ जमीन को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड से नहीं लेने की अपील की। मौलाना अरशद मदनी जमीयत उलेमा-ए-हिंद (ए) के कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए ये बातें कही। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह जमीन का मामला नहीं था, बल्कि मुस्लिम उम्मा 70 साल से अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थी।

मौलाना मदनी ने बताया कि जमीयत की आमसभा में बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिलकरने के लिए कमेटी गठित कर दी गई है। यही कमेटी तय करेगी कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए या नहीं। उन्होंने बताया कि इसके लिए जमीयत के कोर ग्रुप के देशभर के सभी 21 सदस्य को बुलाया गया था।

उन्होंने कहा कि यह मुद्दा न केवल जमात से संबंधित है, बल्कि यह पूरे मुस्लिम समुदाय से संबंधित है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय समझ से परे है। हम यह नहीं समझते कि ऐसा निर्णय क्यों किया गया और न केवल हम, बल्कि देश के कई विशेषज्ञ, वकील और न्यायाधीश भी इस फैसले को नहीं समझ पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट बेंच के जजों ने माना है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को गिराकर नहीं बनाई गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद की शहादत अवैध थी और ऐसा करने वालों ने अपराध किया है। लेकिन फिर भी जमीन हिंदुओं को सौंप दी गई। हमें समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा फैसला क्यों किया गया है।

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर को बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के स्वामित्व वाले भूमि मामले में अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन हिंदू देवता राम लला को सौंपने का फैसला सुनाया। राम लला मामले के तीनों पक्षों में से एक थे। पांच न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराए।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो