राजा की थी रक्षा
सांपों का मेला लगने की दास्तान दिलचस्प होने के साथ ऐतिहासिक भी है। ग्रामीणों का विश्वास है कि 1600 ई. में यहां राजा हुए राय गंगाराम, उनकी रक्षा नाग ने की थी। इसके बाद से ही यह मेला नाग और सांपों के सम्मान में लगने लगा। विषहर मेला या नागपंचमी के बारे में लोगों की धार्मिक मान्यता है कि ये सभी तरह के दुखों से “आमजनों की रक्षा” के लिए है।
धार्मिक आस्था
स्थानीय लोगों के लिए यह मेला धार्मिक आस्था का प्रतीक भी है। इसके अलावा धार्मिक मान्यताओं से इतर भी यह मेला प्रकृति और स्थानीय निवासियों के संबंध मजबूत करने वाला है। कोरोना के कारण इस बार मेला का आयोजन नहीं हुआ इसका स्थानीय लोगों को अफसोस है। आपदा के समय लोगों के पास सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करने के सिवाए कोई दूसरा उपाय नहीं है।
कम रही संख्या
यह मेला समस्तीपुर के ़विभूतिपुर प्रखंड के सिघिया, नरहन, डुमरिया, खदियाही, देसरी, चकहबीब, मुस्तफापुर, शिवाजीनगर के बाघोपुर, खानपुर सहित पूरे इलाके में यह मेला छोटे या बड़े स्तर पर लगता था। पर इस बार कोरोना महामारी ने सर्पों के इस मेले को भी बंद करा दिया। श्रद्धालुओं ने इस बार भी सांपों को निकाला और पूजा की पर यह रस्मदायगी से अधिक कुछ नहीं रही। पिछले साल तक मेला लगने से एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती थी।
एक साथ छोड़ते हैं जंगल में
स्थानीय लोग सांप पकड़कर घरों में रखना शुरू कर देते थे और नागपंचमी के दिन वो सांप लेकर हजारों की संख्या में झुंड बनाकर सुबह नदी के घाट पर जाते थे। नागपंचमी से एक दिन पहले रात भर जागरण होता था। नागपंचमी के दिन ये लोग विषैले सांप और नाग हाथ में उठाकर ढोल-नगाड़ों के के साथ जुलूस निकालते थे। सभी लोग सांप, नाग लेकर जुटते और रात भर की पूजा अर्चना के बाद लोग सुबह जुलूस निकालते हुए नदी जाते, स्नान करके सांप या नाग को दूध लावा खिलाकर जंगल में छोड़ देते थे। यह दृश्य अत्यंत विस्यमकारी होता है, जब सैकड़ों की संख्या में सांपों को एक साथ जंगल में छोड़ा जाता है।