मुसहरा गांव संतकबीरनगर जिले के धर्मसिंहवा थानाक्षेत्र में पड़ता है। पड़ताल करने पर पता चला कि वीडियो है तो उसी गांव का पर नया नहीं बल्कि 2017 का है। स्थानीय लोग ऐसा दावा करते हैं कि मुसहरा गांव में बकरीद पर कभी कुर्बानी नहीं हुई और यहां हमेशा से रोक लगी हुई है। तब इस तरह की कोई बात भी नहीं थी। 2007 में पूर्व विधायक ताबिश खां के कहने पर इस गांव में कुर्बानी कर दी गयी, इसके बाद तो वहां दो गुटों में जमकर बवाल हुआ। बात इतनी बढ़ी कि लूटपाट से लेकर आगजनी और तोड़फोड़ तक हो गयी। हिंसा को काबू मे करने के लिये पुलिस को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे। उसी दिन से वहां कुर्बानी नहीं होती। बकरीद आने पर वहां सुरक्षा के लिहाज से पुलिस फोर्स ओर पीएसी तक तैनात कर दी जाती है।
पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है। त्योहार खत्म होने के तीन दिन बाद जाकर बकरे उनके मालिकों को वापस किये जाते हैं। इस मामले पर जिले के एसपी बेहद संवेदनशील हैं। वह बताते हैं कि विडियो पुराना हैं जिसे सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है। गांव में कोई हिंसा न हो इसके लिये पुलिस बकरों को ले आती है ताकि कुर्बानी पर लगी रोक बरकरार रहे।
गांव के मुस्लिम पक्ष के लोगों ने बताया कि वो कुर्बानी करना चाहते हैं, लेकिन पुलिस और गांव के हिन्दू पक्ष के लोग उन्हें बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देते। इस मामले में पुलिस उनकी मदद करने के बजाय उन्हीं के बकरों को तीन दिन के लिये कैद कर लेती है। बकरीद खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे वापस किये जाते हैं। पुलिस के कब्जे में भी मालिक को ही अपने बकरों की देखभाल करनी पड़ती है और इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जाती कि लोग अपने बकरे पहचान सकें। हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि गांव में 365 दिन में 362 दिन बाजार में बकरे काटकर वैसे ही बेचे जाते हैं, लेकिन इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। बस बकरीद के तीन दिन बकरे नहीं कटने दिये जाते, कोई चोरी-छिपे काट न ले इसके लिये बकरों का कैद कर लिया जाता है।
पडताल में हमारी टीम ने हिंदू पक्ष के लोगों से भी बात की। उनका कहना था कि कोई नई परंपरा नहीं बनने दी जाएगी। दलील और दावा ये कि जब कुर्बानी गांव के बाहर एक जगह पर होती आयी है तो गांव में कुर्बानी क्यों की गयी। रही बात होलिका जलाने की तो उनके मुताबिक जब बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने दी गयी तो मुस्लिम पक्ष के लोगों ने होलिका जलाने वाली जमीन को कब्रिस्तान की भूमि बताकर विवाद पैदा किया और पिछले तीन साल से होलिका जलनी भी रुक गयी।
इस मामले से यहां दोनों समुदायों के लोगों में नफरत की ऐसी दीवार खड़ी हो चुकी है कि जिसे मिटा पाना बेहद मुश्किल है। ऐसा नहीं कि इसके लिये प्रयास नहीं किये गए, पर दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं। सुलह की पूरी कोशिश की गयी पर वो लोग मानने को तैयार नहीं। इस गांव के लोगों ने जैसे अब तय कर रखा है कि एक दूसरे को त्योहार नहीं मनाने देंगे। कुल मिलाकर जरा सी आपसी सूझबूझ और सौहार्द्र की कमी के चलते इस गांव की खुशियां घरों में कैद होकर रह गयी हैं। खुशी के त्योहार भी अपने साथ तनाव लेकर आते हैं।