ग्रहण काल में स्नानदान जप पाठ मंत्र सिद्धि तीर्थदर्शन व हवन आदि शुभ माना गया है। मूर्ति स्पर्श करना, खाना-पीना, निद्रा वर्जित है। ग्रहण के प्रारंभ में स्नान, मध्य में पूजन व मोक्षकाल में पुन: स्नान-दान किया जाना चाहिए। सूतक लगने से पूर्व ही खाद्य सामग्री में तुलसी दल व कुशा रख देना श्रेयस्कर है। इससे ग्रहण की किरणों का विकिरण प्रभावित नहीं करता। सूखे खाद्य पदार्थों में कुशा डालने की आवश्यकता नहीं है। ग्रहण के बाद मुद्रा, वस्त्र, अनाज, बर्तन व धातुओं के दान से दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं। आंखों के रेटिना पर अल्ट्रावायलेट किरणें घातक असर डाल सकती हैं। अत: ग्रहण को नंगी आंखों से न देखें। इस दिन शुभ कार्य निषेध माने गए है। विद्या अध्ययन प्रारंभ नहीं करना चाहिए। गर्भस्थ शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी बरतें। पेट पर गाय के गोबर का लेप लें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप उचित होता है।
– स्पर्श 16, 17 जुलाई की मध्यरात्रि 1.31
– मध्य 17 जुलाई प्रात: काल 3.01 मिनट
– मोक्ष या समाप्ति 17 जुलाई प्रात: काल 4.30
– कुल अवधि 2 घंटे 59 मिनट।(पर्व काल)
– चंद्रकांति निर्मल 17 जुलाई प्रात: 5.49 मिनट
– सूतक 16 जुलाई को 04.31 बजे