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सतना

20 दिन से पेड़ पर टांग रखी है पिता की अस्थियां, प्रशासन बोला-प्रयागराज की अनुमति नहीं मिल रही तो चित्रकूट में करा दो अस्थि विसर्जन

लॉकडाउन में एक गरीब परिवार की बेबशी, मदद की बजय मजाक उड़ा रहे जिम्मेदार

सतनाMay 10, 2020 / 09:06 pm

Sonelal kushwaha

Father's bones hanged on tree for 20 days

Father’s bones hanged on tree for 20 days

सतना. लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की बेबशी किसी से छिपी नहीं है। देशभर में इसकी अलग-अलग तस्वीरें देखने को मिल रही हैं। मध्य प्रदेश के सतना जिले में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला एक मामला सामने आया है। आदिवासी बहुल्य मझगवां ब्लॉक के बम्हौरी गांव में एक गरीब परिवार पिता की मौत के बाद 20 दिन से अस्थि विसर्जन के लिए इंतजार कर रहा है। प्रशासन से उसे प्रयागराज जाने के लिए अनुमति नहीं मिल पा रही। जिम्मेदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि मदद करने की बजाय उसकी बेबसी का मजाक उड़ा रहे हैं।
लॉकडाउन खुलने का इंतजार

पत्रिका ने जब इस संबंध में एसडीएम एचके धुर्वे से बात की तो उन्होंने कहा अस्थियां विसर्जन कराना हमारा काम नहीं है। आप बोल दीजिए कि चित्रकूट में विर्सजित कर दें। वहीं पूर्व विधायक व भाजपा नेता सुरेन्द्र सिंह गहरवार ने कहा क्षेत्र में ऐसा कोई इतना गरीब तो नहीं है कि पिता की अस्थियां विसर्जित नहीं कर पाए। फिलहाल, पीडि़त परिवार पिता की अस्थियां खजूर के पेड़ से लटकाकर लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहा है। उसे उम्मीद है कि १७ मई के बाद ट्रेन व बसें शुरू हो जाएंगी और वह गंगा नदी में अस्थि विसर्जन कर पिता की अंतिम इच्छा पूरी करेगा।
सनातनी परंपरा

हिंदू धर्म में शव का अंतिम संस्कार करने के पश्चात मृत जीव की आत्मा शांति के लिए अस्थि कलश विसर्जन की सनातनी परंपरा है। विषम परिस्थितयों और बेबसी के चलते अब इन परम्पराओं पर भी लॉकडाउन का असर देखने को मिल रहा। करकसता का ताजा उदाहरण मझगवां विकासखण्ड की ग्राम पंचायत बम्हौरी में सामने आया। मृतक के बेटे राजकुमार दाहिया ने बताया कि आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं कि किराए का वाहन कर अपने पिता की अस्थि विर्सजन के लिए प्रयागराज जा सकें। इसलिए पेड़ पर लटकाए हैं। रोजाना सुबह-शाम उस पेड़ की निगरानी के लिए भी परिवार के सदस्य जाते हैं।
यह है मामला
बम्हौरी निवासी ददोल दाहिया की 18 अप्रेल को असमय मौत हो गई। बेटा राजकुमार ने दाह संस्कार किया। २० अप्रेल को परिजनों ने अस्थियां एकत्रित की, लेकिन जब अस्थि विर्सजन की बात आई तो पैसा और पहुंच रोड़ा बन गई। मजदूरी कर रोटी का जुगाड़ करने वाले परिवार के घर में उस वक्त न तो इतने पैसे थे कि निजी वाहन कर सके और न पहचान थी कि जिला प्रशासन से पिता की अस्थियां प्रवाहित करने की अनुमति मिल सके। जब कहीं से किसी प्रकार की मदद न मिली तो परिजनों ने अस्थि कलश को पेड़ पर लटका दिया।
किसी ने नहीं दिखाई सहानभूति
किसी ‘सबलÓ के निधन के बाद सहानुभूति दिखाने वालों की फौज खड़ी हो जाती है, लेकिन ददोल की मौत पर उसके परिजनों से किसी ने सहानभूति दिखाते हुए मदद के लिए अपने हाथ आगे नहीं बढ़ाए। चुनावी सीजन में दरवाजे पर दस्तक देकर वोट मांगने वाले सरपंच व क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने इतना सहयोग भी नहीं किया कि राजकुमार दाहिया अपने पिता की अस्थियां प्रयागराज में प्रवाहित कर सके।
हमारा काम अस्थियां करवाना नहीं है
प्रयागराज की अनुमति नहीं मिल रही। अस्थियां विसर्जन करवाना हमारा काम नहीं है। आप बता दीजिए कि चित्रकूट में विर्सजित कर दें।
एचके धुर्वे, एसडीएम मझगवां

आपसे जानकारी मिली, हम बनेंगे मददगार
मुझे मामले की जानकारी नहीं है। आपके द्वारा यह सूचना मिली है। पेड़ पर लटक रही अस्थियां विर्सजित हो सकें, इसके लिए हम पूरी मदद करेंगे।
ओमकार सिंह, जनपद अध्यक्ष मझगवां
मौत की जानकारी है, पर अस्थियों की नहीं
ददोल की मृत्यु हुई है यह जानकारी तो है पर अस्थियां पेड़ पर टंगी हैं, इसकी सूचना बिल्कुल नहीं। मंै पता करूंगा। प्रयास रहेगा कि पीडि़त परिवार की मदद हो सके।
ललित पाण्डेय, सचिव बम्हौरी

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