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सतना

बारिश के मौसम में आदिवासियों के घर गिरा कर ला दिया खुले आसामान के नीचे

-बच्चे-वृद्ध बारिश में भींगने को मजबूर

सतनाJul 10, 2020 / 03:51 pm

Ajay Chaturvedi

अतिक्रमण के नाम पर गिरा दिया इनके झोपड़े (प्रतीकात्मक फोटो)

अतिक्रमण के नाम पर गिरा दिया इनके झोपड़े (प्रतीकात्मक फोटो)

सतना. बारिश के मौसम में कहां तक गरीबों, असहायों को एक छत मुहैया कराते तो उल्टे जिनके पास घर थे उसे भी गिरा कर बच्चे, बूढे और महिलाओ को खुले आसमान के नीचे गुजर करने को मजबूर कर दिया है वन विभाग ने। मजबूरी में उजाड़ा गया आदिवासी परिवार बरगद के पेड़ के नीचे गुजर-बसर करने को विवश है। वो तीन दिन से यूं हीं बारिश में भींग रहे हैं पर उनकी ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं।
बात अजयगढ़ विकासखंड अंतर्गत पाठा ग्राम की वन भूमि की है, जहां के बारे में बताया जा रहा है कि इस जमीन पर बहेलिया आदिवासियों का परिवार रहता था। उन्होंने अपने रहने के लिए झोपड़े बना लिए थे। लेकिन इन सब के झोपड़ो को जमींदोज कर दिया गया है। यह किया है वन विभाग ने। नतीजतन गरीब बहेलिया परिवार बारिश के मौसम में बेघर हो चुके हैं। झोपड़ी उजड़ने और कोई सुरक्षित ठिकाना न होने से प्रभावित परिवार के लोग, मासूम बच्चों और वृद्घों के साथ बरगद के पेड़ के नीचे शरण लेने को मजबूर हैं।
गरीबों की मदद करने और वन भूमि पर काबिज पात्र वनवासियों को वनाधिकार पट्टा देने की बात करने वाली शिवराज सरकार में अफसर गरीबों के हितों के संरक्षण को लेकर कितने सजग और संवेदनशील हैं, पाठा ग्राम के बहेलियों का मामला इसका ताजा उदारहण है। बारिश के मौसम में पेड़ के नीचे रहने को मजबूर बेघर गरीब बहेलियों के संबंध में जानकारी होने के बाद भी अजयगढ़ के राजस्व अधिकारियों ने अब तक उन्हें सुरक्षित स्थान पर शरण दिलाने अथवा उनकी मदद करना भी उचित नहीं समझा।
इस संबंध में जब अजयगढ़ एसडीएम बीबी पांडेय से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने प्रकरण वन विभाग से संबंधित होना बताते बेघर बहेलियों के पुनर्वास तथा उन्हें तत्काल मदद पहुंचाने के सवालों से अपना पल्ला झाड़ लिया। उधर, कथित तौर वन भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के नाम पर बहेलियों के झोपड़ों को बारिश के मौसम में गिराकर उन्हें बेघर करने की कार्रवाई की लोग तीखी आलोचना कर रहे हैं। अधिकांश लोग वन विभाग की कार्रवाई की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाते हुए इसे संवेदनहीनता करार दे रहे हैं।
विमुक्त घुमंतु जातियों की श्रेणी में आने वाले बहेलियों ने वन विभाग की कार्रवाई को अपने साथ अत्याचार बताते हुए दावा किया कि उक्त वन भूमि पर वे करीब दो दशक से भी अधिक समय से काबिज हैं। उन्होंने स्वयं को पाठा ग्राम का स्थाई निवासी बताते हुए अपने वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, सामाजिक सुरक्षा पेंशन संबंधी दस्तावेज प्रमाण के रूप में दिखाए। साथ ही सवाल भी उठाया है कि काम के आभाव में अगर कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए गांव से पलायन करता है तो क्या वापस लौटने पर वह अपने घर या कब्जे की भूमि का अधिकार खो देता है? इस सवाल का सीधा जबाव किसी के पास नहीं है।
अजयगढ़ के रेंजर से वन भूमि में नया अतिक्रमण होने की जानकारी दी गई थी, जिस पर अतिक्रमण को रोकने की कार्रवाई की गई। उस वन भूमि में बहेलिया परिवार स्थाई तौर पर नहीं रहते हैं, ये हर साल बारिश के समय आकर खेती करते और फिर अन्यंत्र चले जाते हैं। बहेलिया परिवार के पेड़ के नीचे शरण लेने की उन्हें जानकरी नहीं है।-गौरव शर्मा, डीएफओ उत्तर वनमंडल पन्ना

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