Gandhi Jayanti Special: इस गांव में बसती है बापू की आत्मा, आश्वासन पर टिकी चरखा वाले 130 परिवारों की जिंदगी
गांधी जयंती विशेष: गांधी प्रेम व स्वावलंबन का मिसाल सतना का सुलखमां गांव, चरखा चलाते गुजर गईं तीन पीढि़यां, सूत की कमाई से पल रहे 130 परिवार, बापू से प्रेरित सतना जिले का अनोखा गांव, जहां बसती है महात्मा गांधी की आत्मा
Gandhi Jayanti: story of satna district ramnagar Area Sulkhama village
सुखेंद्र मिश्रा@सतना/ देश की आजादी व स्वावलंबन का प्रतीक बापू का चरखा अब संग्रहालयों की शोभा बन चुका है। लेकिन, सतना जिले में एक ऐसा गांव भी है जहां चरखे के रूप में आज भी हर घर में बापू की आत्मा बसती है। जिला मुख्यालय से 80 किमी. दूर बाणसागर की गोद में बसे सुलखमां गांव के 130 परिवार आज भी रोजी-रोटी के लिए चरखा की कमाई पर आश्रित हैं।
Patrika IMAGE CREDIT: Patrikaकुटीर उद्योग को प्रोत्साहन न मदद हालांकि सरकार व प्रशासन की ओर से इस कुटीर उद्योग को किसी प्रकार की मदद व प्रोत्साहन न मिलने से 100 साल से इस कारोबार से जुड़ा पाल परिवार निराश है। 50 साल से चरखा चलाकर सूत कात रहे दद्दू पाल ने बताया कि अब प्लास्टिक की चटाई के दौर में चरखे के सूत से बने कम्बल खरीदने में लोगों की रुचि नहीं रही। इसलिए अब इतनी आय नहीं हो पाती कि परिवार चल सके। फिर भी जब तक जिंदा हैं, गांव में बापू का चरखा थमने वाला नहीं।
Patrika IMAGE CREDIT: Patrikaसहयोग के नाम पर आश्वासन 55 वर्षीय रामनेवाज पाल बताते हैं, शायद सुलखमां देश का इकलौता गांव है जहां आज भी 100 से अधिक परिवार चरखा चलाकर अपना भरण पोषण कर रहे हैं। गांधी जयंती पर जनप्रतिनिधि व सरकार गांधीजी के आदर्शों पर चलने का ढोंग पीटते हैं, गांधी संकल्प यात्रा में लाखों रुपए बर्बाद करते हैं।
पर दुर्भाग्य यह है कि चार पीढ़ी से बापू के आदर्शों पर चलने वाले हमारे गांंव के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया। चुनाव के समय गांव में हथकरघा उद्योग लगाने व सूत उद्योग से जुडे़ परिवारों को प्रोत्साहन राशि देने के वादे किए जाते हैं लेकिन मदद के नाम पर 50 साल से सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे हैं।