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सतना

आज भी शहर में उठाया जा रहा पतंगबाजी का लुत्फ

इंटरनेशनल काइट डे स्पेशल:40 साल से यहां पतंगों का क्रेज , पर बच्चों को नहीं मिल रहा पहले जैसा माहौल

सतनाJan 14, 2020 / 09:40 pm

Jyoti Gupta

International Kite Day Special

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सतना. आज इंटरनेशनल काइट डे है। साथ ही अपना त्योहार मकर संक्रांति भी। एेसे में शहर के बच्चे और युवा आज जमकर पतंगबाजी करेंगे। शहर में पतंगबाजी का क्रेज आज भी बरकरार है। वक्त के साथ पंतंगों की साइज बदल गई। डिजाइन बदल गई, पर अब बच्चों को पहले जैसा माहौल नहीं मिल पा रहा है। शहर के आेल्ड पर्सन का कहना है कि पहले जब जनवरी आती थी तो पहले ही सप्ताह से पतंगबाजी शुरू हो जाती थी और मकर संक्रांति के एक हफ्ते बाद तक पतंगबाजी होती थी। उनके पास पतंग उड़ाने के लिए पर्याप्त जगह होती थी । पहले गली मोहल्ले की सड़कें भी चौड़ी थी। ग्राउंड भी खाली रहते थे पर अब एेसा नहीं है। सड़के सकरी हो गई है। ग्राउंड दूसरी तरह की गतिविधियों से भरा रहता है। और बहु मंजिला इमारते इन पतंगों को उड़ाने में बाधा बन रही है। फिर भी पहले की अपेक्षा आज देखा जाए तो भी बच्चों और युवाओं में पतंग का क्रेज है। भले ही यह क्रेज एक से चार दिन के अंदर फिनिश हो जाए । पर वे पतंग उड़ाने से पीछे नहीं हटते।
कागज से पैराशूट तक

दुकानदार मोहम्मद अलि कहते हैं कि पहले की अपेक्षा पतंग उड़ाने वालों की संख्या भले ही कम हो गई है। पर पतंग उड़ाने का क्रेज नहीं खत्म हुआ। तभी तो बच्चे और युवा एक साथ पांच से दस पतंगे ले कर जा रहे हैं। यही वजह है कि आज भी पतंगे बिक रही है। अंतर इतना है कि पहले कागज की पतंग बिकती थी अब पॉलिथीन और पैराशूट की पतंगे भी बनने लगी ।
पतंग के डिजाइन, आकार और पैटर्न में आया बदलाव
वक्त बदल गया है। और इस वक्त के साथ पतंगों की डिजाइन, आकार और पैटर्न भी बदल गए हैं। सिंपल सी दिखने वाली पतंग अब डिजाइनर हो गई है। आकार की बात करें तो पहले दो फीट तक की पतंग देखने को मिलती थी अब आठ फीट की पतंग भी बाजारों में उपलब्ध है। अब इनमे लोकप्रिय नेताओं, सेलिब्रेटी, कॉटूर्न कैरेंक्टर प्रिंट होने लगे। पतंगों में सोशल मैसेज भी लिखा जाने लगा और तो और अब तो इसके शेप में भी कभी चेंजेंज देखने को मिल रहे हैं।
बच्चों में खास उत्साह
पतंगों को लेकर बच्चों में आच्छा खासा क्रेज देखने को मिल रहा है। भले ही बच्चे पतंग उड़ाना न जानते हो पर वे पतंग खरीदने में पीछे नहीं है। शहर के बाजारों में वे सुबह से ही पतंग खरीदने पहुंच जाते हैं। घर के बड़े बुजूर्गों से पतंग उड़ाना भी सीख रहे हैं।
यह कहते हैं हमारे बड़े, बुजूर्ग

अब वो बात नहीं

60 वर्षीय गीतप्रसाद शर्मा कहते हैं कि पहले जैसे बात अब नहीं देखने को मिलती । अब बच्चों को एक दिन का अवकाश मिलता है। उसमें वह कितनी पतंगे उड़ा सकते हैं। पहले अवकाश कोई बाधा नहीं था । जब मन करता हम सभी एक जगह एकत्रित हो जाते और सभी जमकर पतंग उड़ाते। उस समय उम्र का भी कोई बाउंडेशन नहीं था । बच्चे, युवा, बुजूर्ग सभी एक साथ पतंग उड़ाते थे। अब बच्चे, युवा पतंग उड़ाते हैं और बुर्जूग उन्हे निहारते हैं।
मार का भी डर नहीं था
पुष्पराज कॉलोनी निवासी संजय जैन कहते हैं कि पहले पतंग के लिए लोग जमकर मार खाते थे, पर पतंग उड़ाना नहीं छोड़ते थे। पतंगबाजी का एेसा क्रेज की स्कूल बंक कर देना तो आम बात होती थी। घर का काम एक तरफ और दिन भर पतंग उड़ाना एक तरफ। शाम को जब मन भर जाता तब जाकर खाने और दूसरे कामों का होश आता था । चाहे जितनी भी पिटाई हो पर पतंग की डोर हाथ से नहीं छूटती थी ।
बहुमंजिला इमारते बन रही बांधा

कंपनी बाग निवासी मोहम्मद परवेज कहते हैं। पहले के समय में खुली खुली छत होती थी। और एक छत से दूसरी छत में जाकर पतंग उड़ाने की जगह मिलती थी । अब बहुमंजिला इमारते पतंग उड़ाने में बांधा बन चुकी है। हर उम्र के लोग एक साथ पतंग बाजी का लुत्फ उठाते थे। घर की महिलाएं भी सारा काम खत्म कर छतो पर आजाती थी । पर अब एेसा माहौल देखने को नहीं मिलता। अब बच्चों को पतंग उड़ाने के लिए न तो ग्राउंड बचे न ही छत और न ही गलियां।

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