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सतना

4 दशक बाद फिर विंध्य में दहाड़ रहा सफेद बाघों का कुनवा, इस लेखक ने बताई A से Z तक कहानी

ये भी समझते हैं प्यार की भाषा

सतनाJul 29, 2019 / 04:45 pm

suresh mishra

International Tiger Day: Rewa white tiger history in hindi mohan tiger

International Tiger Day: Rewa white tiger history in hindi mohan tiger

सतना। जानवरों को सामान्यतौर पर हिंसक माना जाता है, लेकिन सब एक जैसे होते हैं, ऐसा नहीं है। जिस तरह मानव का स्वभाव होता है, वही स्थिति इनमें भी है। बाघों में अपने इंन्द्रिय बोध शक्तियों की सहायता से समझने की बड़ी शक्ति होती है। चिडिय़ाघर और व्हाइट टाइगर सफारी में हर दिन बाघों को करीब से देखना होता है, इसलिए इनके स्वभाव को लेकर समझ में आया है कि इनके भीतर भी संवेदना होती है। कुछ गुस्सैल शुरू से होते हैं। सफेद बाघों की जहां तक बात है तो इनकी भी प्रवृत्ति वही होती है, इसमें भी कुछ जल्दी गुस्से में आ जाते हैं जबकि अन्य सामान्य ही रहते हैं। हमारे यहां इनके केयर टेकर के साथ बेहतर तालमेल हो चुका है। उनकी आवाज को ये समझ जाते हैं।
सफारी की पहली सफेद बाघिन विंध्या तो शांत स्वभाव की है, कई बार सड़क के किनारे वाहन के नजदीक आ आती है, गाड़ी के भीतर से लोग तस्वीरें भी खींचते हैं। वहीं सफारी का बाघ रघु जंगल के राजा की तरह है, अपनी मर्जी के अनुसार ही विचरण करता है। सफेद बाघों की प्रजाति जहां भी है, वह चिडिय़ाघर में ही है, जिनकी देखरेख हो रही है। जंगल में इनके पैदा होने की संभावना दस हजार में एक के होने की मानी जाती है। कई अध्ययन भी हुए हैं, जिसमें पता चला है कि जंगलों में सफेद बाघ नहीं हैं।
वहीं चिडिय़ाघर के बाड़ों में रखे गए बाघों की बात करें तो उनकी भी केयर टेकर के साथ अच्छी तालमेल बैठ रही है। यह कहें कि अपने भोजन की टाइमिंग या फिर नाइट हाउस के नजदीक केयर टेकर को देखकर वह स्वयं ही पहुंच जाते हैं। बाघों की वजह से ही खासतौर पर व्हाइट टाइगर के चलते मुकुंदपुर में विदेशी पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है। खुद के संसाधन से इसे और विकसित किया जा रहा है। मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी परिसर इसलिए भी आकर्षण का केन्द्र है कि यह मांद रिजर्व क्षेत्र में बनाया गया है।
(लेखक महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिडिय़ाघर एवं सफारी के संचालक संजय रायखेड़े हैं।)
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
मोहन की मौत के दिन रीवा में राजकीय शोक घोषित किया गया था। बांधवगद्दी के राजसी ध्वज में पार्थिव शरीर ढंका गया। बंदूकें झुकाकर सलामी दी गई। पुलुआ के अनुसार उस दिन महाराजा मार्तण्ड सिंह ने कहा था कि आज हमने अपनी बहुमूल्य धरोहर खो दी है। मौत के कई घंटे तक महाराजा एकांत में रहे। कई दिनों तक शोक सभाएं हुईं।
ऐसे बढ़ाया हमारा गौरव
मोहन और उसके वंशज सफेद बाघों ने कई अवसरों पर रीवा सहित पूरे विंध्य का गौरव बढ़ाया है। दुनिया में जहां भी सफेद बाघ हैं, उनके वंशजों की चर्चा होगी तो इस क्षेत्र का नाम जरूर लिया जाएगा।
अमेरिका की शान मोहिनी
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी नाम की सफेद बाघिन को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जाया गया। व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत किया गया।

1987 में डाक टिकट
डाक और दूरसंचार विभाग ने 1987 में डाक टिकट जारी किया। इसमें मोहन की फोटो लगाई गई।
जानवरों का पहली बार बीमा
देश में जानवरों का पहली बार बीमा सफेद बाघ मोहन का ही हुआ था।

चार दशक बाद फिर दहाड़
रीवा से दुनिया भर में भेजे गए बाघों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन आखिरी बाघ के रूप में 8 जुलाई 1976 को विराट नाम के बाघ की मौत के बाद सफेद बाघों के बिना ही जंगल रहे। सतना और रीवा जिले की सीमा पर स्थित मांद रिजर्व क्षेत्र मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी बनाई गई, यहां पर भोपाल के वन विहार से 9 नवंबर 2015 को सफेद बाघिन विंध्या लाई गई। वर्तमान में मुकुंदपुर सफारी और चिडिय़ाघर में सफेद बाघों का दो जोड़ा है। साथ ही तीन यलो टाइगर के साथ ही एक जोड़ा लायन भी है। व्हाइट टाइगर सफारी को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी अब मुकुंदपुर पहुंचने लगे हैं।
दुनिया के कई देशों में गए मोहन के वंशज
रीवा की धरती से सफेद शेर मोहन के वंशज दुनिया के कई देशों में भेजे गए। जहां भी सफेद शेर हैं वे कहीं न कहीं मोहन के वंशज ही हैं। रीवा से सफेद शेर अमेरिका, जापान, इंग्लैण्ड, युगोस्लाविया, हंगरी, अफ्रीका के कई देशों सहित अन्य स्थानों पर भेजे गए थे।
मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू पर एक नजर
– क्षेत्रफल- चिडिय़ाघर 75 हेक्टेयर, सफारी 25 हे.
– मांद के जंगल में 100 हे. में टाइगर सफारी

ये वन्यजीव मौजूद
– सफेद बाघ- 4
– रायल बंगाल टाइगर-3
– लायन-2, तेंदुए-4
अन्य जानवर
– भालू तीन
– आठ सांभर
– 13 काले हिरण
– चीतल 30
– तीन नीलगाय
– 6 थामिन डियर

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