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सतना

लोकसभा चुनाव में साधु-संतों पर मुख्य पार्टियों की नजर, यहीं से होती है चुनाव प्रचार की शुरुआत

चुनावी मौसम में साधु-संतों पर पार्टियों की नजर, अंतिम दौर में सतना, पन्ना, रीवा व बांदा के चुनाव

सतनाMay 02, 2019 / 01:18 pm

suresh mishra

matdan

lok sabha election 2019: sadhu-sant matdata par BJP Congress ki nazar

सतना। चुनावी मौसम अपने चरम पर है। प्रत्याशी अंतिम समय पर अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। लेकिन, इस दौर में चित्रकूट के साधु-संतों की चुप्पी पार्टियों की धड़कन बढ़ा रही है। उनके चुप रहने व न रहने दोनों स्थिति में पार्टी विशेष के प्रत्याशियों को लाभ मिलेगा। सामान्य तौर पर साधु-संतों का समर्थन भाजपा के प्रति माना जाता है। चुनावी मौसम में संतों की बयानबाजी से भाजपा को लाभ मिलता रहा पर इस बार लोकसभा चुनाव में चित्रकूट के संत चुप्पी धारण किए हुए हैं।
जबकि इससे पूर्व संत, महंत अक्सर राजनीति में भी सक्रियता दिखाते थे। प्रत्याशी के प्रचार के दौरान भी दिखते थे। लिहाजा, अंतिम समय में राजनीतिक दल व प्रत्याशी उन पर नजर रखे हुए हैं। उनकी गतिविधि व उनसे मिलने वालों की जानकारी तक रखी जाती है। इसके पीछे डर है कि अंतिम समय में कोई संत कुछ बयानबाजी न करे।
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आशीर्वाद से शुरू की सियासत
सतना व बांदा संसदीय क्षेत्र के नेताओं की बात करें तो भाजपा, कांग्रेस, सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार की शुरुआत धर्मनगरी के साधु-संतों से आशीर्वाद लेकर की। कई संतों से चुनाव प्रचार करने की गुजारिश और अपने पक्ष में बयान देने के लिए कहा, लेकिन साधु संतों ने किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में बयान नहीं दिया। साथ ही किसी राजनीतिक दलों के मंच पर भी नहीं जा रहे हैं।
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भागे-भागे आए थे सीएम
चित्रकूट की मंदाकिनी नदी की सफाई को लेकर संत समाज ने आंदोलन छेड़ा था। सतना के प्रशासनिक अधिकारी सुनने को तैयार नहीं थे। तब संत समाज ने घोषणा कर दी थी कि इसका असर चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव में होगा। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चित्रकूट पहुंचे और संतों की बातों को सुनते हुए एक झटके में जिला प्रशासन के अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए।
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ये बड़े उदाहरण हैं
जगद्गुरु रामभद्राचार्य भाजपा के पक्ष में खुलेआम सभाओं में चुनाव प्रचार किया करते थे। इस बार उन्होंने भी पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। पिछले चुनाव के दौरान बाबा रामदेव ने चित्रकूट जिले में योग शिविर लगाया था। उस शिविर में भी कई संत शामिल हुए थे। इसी तरह से धर्मनगरी के कई अन्य संत भी राजनीतिक दलों के मंच में दिखाई देते थे, लेकिन इस बार दूरी बनाए रखे हैं।

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