स्थानीय लोगों का कहना है कि लॉकडाउन में जब तक रेत कारोबार को अनुमति नहीं मिली थी तब तक मैहर के अंदर से होकर भारी वाहनों का आना जाना कम ही था। लेकिन जबसे रेत की अनुमतियां जारी होने लगीं, तबसे बरही से आने वाले रेत से भरे ट्रकों का बड़ी संख्या में कस्बे के अंदर से आना जाना शुरू हो गया। इसी तरह से गिट्टी के ट्रकों का भी नगर में आना जाना लगा रहता है। इससे हादसों का खतरा बढ़ गया था। नगरवासियों की मांग को देखते हुए कलेक्टर अजय कटेसरिया ने एक बार फिर से नो-इंट्री को प्रभावी कर दिया था। हालांकि, नो-इंट्री कभी हटी नहीं थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने अपने से स्व-घोषित तरीके से इसमें छूट दे दी थी। लेकिन अब नो-इंट्री के प्रभावी होने से रेत और गिट्टी कारोबारियों को कारोबारियों को काफी चक्कर लगाना पड़ रहा है या इंतजार करना पड़ रहा है।
सबसे ज्यादा नुकसान रेत कारोबारियों को हो रहा है। इन्हें २४ किमी अतिरिक्त दूरी तय करने पड़ती है। अगर दो चक्कर लगाए जाते हैं तो यह १०० किमी का अतिरिक्त फेरा हो जाता है। एक थाना भी अधिक पड़ जाता है। ज्यादातर रेत का परिवहन ओवर लोड होता है। ऐसे में दोनो पक्षों को नुकसान हो रहा है। रेत कारोबारियों को अतिरिक्त दूरी चलनी पड़ रही है तो कुछ सरकारी अमले को अवैध वसूली का नुकसान हो रहा है। यही स्थिति सीमेंट और अन्य कारोबारी ट्रकों की है। इन्हें अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ रही है। ऐसे में थाना प्रभारी और एसडीएम का नो-इंट्री हटाने का प्रस्ताव कई सवाल खड़े कर रहा है।
दे रहे गलत जानकारी
जानकारों का कहना है कि थाना प्रभारी मैहर और एसडीएम का यह कहना कि वर्तमान में ट्रकों का आवागमन बहुत कम है अपने आप में इसलिए गलत है, क्योंकि इसका अंदाजा किसी भी वक्त सतना-अमरपाटन रोड में बढ़े परिवहन संख्या को देख कर लगाया जा सकता है। अकेले रेत और गिट्टी से जुड़े कारोबार के वाहनों की संख्या ५० से १०० बीच बढ़ गई है। स्पष्ट हो रहा है कि नो-इंट्री में छूट किसके लिए चाही जा रही है।
सैकड़ों घरों के दीपक बुझने के बाद नो-इंट्री की सौगात मिली है। अगर यह प्रयास जारी है तो यह गलत है। नो-इंट्री किसी भी स्थिति में न हटनी चाहिए न स्थगित होनी चाहिए।
मनीष चतुर्वेदी, एडवोकेट
लंबी मांग के बाद नो-इंट्री की सौगात मिली है। नो-इंट्री के बाद से कस्बे में दुर्घटनाओं में विराम लगा है। मैहर प्रशासन अगर छेड़छाड़ की तैयारी कर रहा है तो गलत है। हम इसका विरोध करते हैं।
पारसनाथ तिवारी, समाजसेवी