काम करने का पहला जज्बा मां से ही सीखा
सिटी मजिस्ट्रेट संस्कृति शर्मा आज प्रशासनिक अधिकारी बनकर जन सेवा के लिए अग्रसर हंै। वे हिम्मती हैं, मेहनती हैं और हर निर्णय को लेने में सक्षम। उनका कहना है, आज वो जो कुछ भी हंै उसका पूरा श्रेय उनकी मां प्रतिमा शर्मा को जाता है। संस्कृति बताती हैं, पापा की बाहर पोस्टिंग रहती थी। मां अकेले ही हम सब बच्चों को संभालती थी। खास बात यह थी कि वह शिक्षिका थी, यानी एक वर्कि ंग वीमेन। एक वर्कि ंग वीमन के लिए घर, बाहर, दफ्तर और बच्चों को संभालना बहुत बड़ी चुनौती है। पर वह हर चुनौती में खरी उतरी। काम करने का जज्बा मां से मिला। खुद से फैसला लेने की सीख उनसे मिली। मुझे याद है, जब भी मैं एमपीपीएससी का एग्जाम देने जाती तो मां हर वक्त मेरे साथ होती। मैं तीन घंटे एग्जाम हाल के अंदर और वह तीन घंटे बाहर। उनका सपोर्ट हर वक्त मेरे साथ रहा। यही वजह रही कि आज मैं इस पोस्ट तक पहुंच सकी। आज भी जब वो मेरे पास होती हैं तो मेरा इंतजार करती हैं। मेरे घर आने के बाद ही वह सोने जाती हैं। मां मेरे लिए ताकत का काम करती हैं। उनके बिना जीवन अधूरा है।
सिटी मजिस्ट्रेट संस्कृति शर्मा आज प्रशासनिक अधिकारी बनकर जन सेवा के लिए अग्रसर हंै। वे हिम्मती हैं, मेहनती हैं और हर निर्णय को लेने में सक्षम। उनका कहना है, आज वो जो कुछ भी हंै उसका पूरा श्रेय उनकी मां प्रतिमा शर्मा को जाता है। संस्कृति बताती हैं, पापा की बाहर पोस्टिंग रहती थी। मां अकेले ही हम सब बच्चों को संभालती थी। खास बात यह थी कि वह शिक्षिका थी, यानी एक वर्कि ंग वीमेन। एक वर्कि ंग वीमन के लिए घर, बाहर, दफ्तर और बच्चों को संभालना बहुत बड़ी चुनौती है। पर वह हर चुनौती में खरी उतरी। काम करने का जज्बा मां से मिला। खुद से फैसला लेने की सीख उनसे मिली। मुझे याद है, जब भी मैं एमपीपीएससी का एग्जाम देने जाती तो मां हर वक्त मेरे साथ होती। मैं तीन घंटे एग्जाम हाल के अंदर और वह तीन घंटे बाहर। उनका सपोर्ट हर वक्त मेरे साथ रहा। यही वजह रही कि आज मैं इस पोस्ट तक पहुंच सकी। आज भी जब वो मेरे पास होती हैं तो मेरा इंतजार करती हैं। मेरे घर आने के बाद ही वह सोने जाती हैं। मां मेरे लिए ताकत का काम करती हैं। उनके बिना जीवन अधूरा है।
मां ने बना दिया डॉक्टर
जिला अस्पताल में कार्यरत हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव बताते हैं कि मां सुदामा श्रीवास्तव ने तो उनकी दिशा और दशा दोनों बदल दिया। अगर मां की इच्छा शक्ति नहीं होती तो शायद आज वह डॉक्टर की जगह कुछ और होते। मां शिक्षिका थी। इसलिए हम सभी बच्चों को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित करती थीं। व्यस्त शेड्यूल में भी पहले हमंे प्राथमिकता देती थीं। वो हम सभी को बेहद प्यार करती थीं पर इसका मतलब यह नहीं था कि वे हमारी गलतियों को नजरअंदाज कर दें। जीवन को लेकर उनका नजरिया कुछ और ही है। उनका कहना है कि हम सब का जन्म कुछ परोपकार करने के लिए हुआ है। वह शिक्षिका बनकर बच्चों का भविष्य बनाती थीं और मैं डॉक्टर बनकर लोगों के जीवन को बचाता हंू। उनकी एक एक सीख आज भी मेरे काम आती है। ८२ वर्ष की होने की बावजूद आज भी वो हमंे कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करती हैं। इस उम्र में भी वो मेरा इंतजार करती हैं। इंटर पर मैं मैथ लेने जा रहा था। पर वह मुझको मुझसे ज्यादा अच्छे से पहचानती थीं, इसलिए उन्होंने मुझे मैथ की जगह बायो लेने के लिए कहा। इसका नतीजा यह हुआ कि आज मैं डाक्टर हंू। मेरा और मेरी का मां का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है। हम दोनों आज भी अपना बर्थडे एक साथ मनाते हैं।
जिला अस्पताल में कार्यरत हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव बताते हैं कि मां सुदामा श्रीवास्तव ने तो उनकी दिशा और दशा दोनों बदल दिया। अगर मां की इच्छा शक्ति नहीं होती तो शायद आज वह डॉक्टर की जगह कुछ और होते। मां शिक्षिका थी। इसलिए हम सभी बच्चों को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित करती थीं। व्यस्त शेड्यूल में भी पहले हमंे प्राथमिकता देती थीं। वो हम सभी को बेहद प्यार करती थीं पर इसका मतलब यह नहीं था कि वे हमारी गलतियों को नजरअंदाज कर दें। जीवन को लेकर उनका नजरिया कुछ और ही है। उनका कहना है कि हम सब का जन्म कुछ परोपकार करने के लिए हुआ है। वह शिक्षिका बनकर बच्चों का भविष्य बनाती थीं और मैं डॉक्टर बनकर लोगों के जीवन को बचाता हंू। उनकी एक एक सीख आज भी मेरे काम आती है। ८२ वर्ष की होने की बावजूद आज भी वो हमंे कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करती हैं। इस उम्र में भी वो मेरा इंतजार करती हैं। इंटर पर मैं मैथ लेने जा रहा था। पर वह मुझको मुझसे ज्यादा अच्छे से पहचानती थीं, इसलिए उन्होंने मुझे मैथ की जगह बायो लेने के लिए कहा। इसका नतीजा यह हुआ कि आज मैं डाक्टर हंू। मेरा और मेरी का मां का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है। हम दोनों आज भी अपना बर्थडे एक साथ मनाते हैं।