पहचान की जरुरत
सतना जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर और मझगवां तहसील से महज 20 किलोमीटर दूर आदिवासी गांव रामनगर खोखला, पड़ोधारी, पड़ोऊपर, पड़मनिया और मलगौसा में आज भी तीरंदाजी का महत्व है। यहां के बच्चे तीर कमान से परिचित हैं। जरूरत है, बच्चों को आर्चरी के लिए पूरी तरह से तैयार करने की। इनके बीच जागरूकता लाने की। अगर पूरी तैयारी के साथ इन बच्चों को आर्चरी में टे्रनिंग दी जाए तो जिस तरह से यहां के बच्चे फुटबाल, वॉलीबाल, क्रिकेट, कबड्डी, बैडमिंटन और बुशू जैसे खेल में राष्ट्रीयस्तर पर शहर का नाम रोशन कर रहे हैं, उसी तरह आर्चरी में भी पहचान दिला मिलेगी। स्थानीय पर स्तर पर खेल अधिकारी को आर्चरी के लिए खेल विभाग को प्रापोजल भेजना चाहिए ताकि इस तीरंदाजी को भी शहर में पहचान दिलाई जा सके।
सतना जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर और मझगवां तहसील से महज 20 किलोमीटर दूर आदिवासी गांव रामनगर खोखला, पड़ोधारी, पड़ोऊपर, पड़मनिया और मलगौसा में आज भी तीरंदाजी का महत्व है। यहां के बच्चे तीर कमान से परिचित हैं। जरूरत है, बच्चों को आर्चरी के लिए पूरी तरह से तैयार करने की। इनके बीच जागरूकता लाने की। अगर पूरी तैयारी के साथ इन बच्चों को आर्चरी में टे्रनिंग दी जाए तो जिस तरह से यहां के बच्चे फुटबाल, वॉलीबाल, क्रिकेट, कबड्डी, बैडमिंटन और बुशू जैसे खेल में राष्ट्रीयस्तर पर शहर का नाम रोशन कर रहे हैं, उसी तरह आर्चरी में भी पहचान दिला मिलेगी। स्थानीय पर स्तर पर खेल अधिकारी को आर्चरी के लिए खेल विभाग को प्रापोजल भेजना चाहिए ताकि इस तीरंदाजी को भी शहर में पहचान दिलाई जा सके।
यह आ रही समस्या कराते प्लेयर अनुष्का वर्मा बताती हैं, वह भी तीरंदाजी में आगे बढऩा चाहती थीं। पर यहां पर आर्चरी के लिए न तो कोई ग्राउंड है और न ही इससे संबंधित ऑर्गन। एेसे में इस क्षेत्र में बढऩा मुश्किल था। हालांकि जबलपुर में आर्चरी का स्कूल है। पर वहां एडमिशन लेने के लिए अधिक रुपए और समय की जरूरत है। इसलिए मैंने खुद कराते के क्षेत्र में कदम बढ़ा लिया। जब भी इंटरनेशनल प्लेयर दीपिका कुमारी के शौर्य को सुनती हंू तो आज भी कदम आर्चरी के क्षेत्र में आने को करते हैं। पर अफसोस मन मार कर ही रहना पड़ रहा है।